जम्बूद्वीप के समान ही धातकीखण्ड एवं पुष्करार्ध में २-२ मेरू के निमित्त से सारी रचना दूनी-दूनी होने से चैत्यालय भी दूने-दूने हैं। धातकीखण्ड एवं पुष्करार्ध में २-२ इष्वाकार पर्वत पर २-२ चैत्यालय हैं। मानुषोत्तर पर्वत पर चारों ही दिशाओं के ४ चैत्यालय हैं। आठवें नंदीश्वर द्वीप की चारों दिशाओं के ५२ चैत्यालय हैं। ११वें कुण्डलवर द्वीप में स्थित कुण्डलवर पर्वत पर ४ दिशा सम्बन्धी ४ चैत्यालय हैं।
तेरहवें रुचकवर द्वीप में स्थित रुचकवर पर्वत पर चार दिशा सम्बन्धी ४ चैत्यालय हैं। इस प्रकार ४५८ चैत्यालय होते हैं। यथा—
जम्बूद्वीप में —–७८ चैत्यालय
धातकीखण्ड में —–१५६ चैत्यालय
पुष्करार्ध में —-१५६ चैत्यालय
धातकी खण्ड एवं पुष्करार्ध में स्थित इष्वाकार पर्वतों पर ———-४ चैत्यालय
मानुषोत्तर पर्वत पर ——-४ चैत्यालय
नंदीश्वर द्वीप में ——–५२ चैत्यालय
कुण्डलगिरि में ——४ चैत्यालय
रुचकवरगिरि में ———४ चैत्यालय
७८ ± १५६ ± १५६ ± ४ ± ४ ± ५२ ± ४ ± ४ · ४५८ चैत्यालय हैं। इन मध्यलोक सम्बन्धी ४५८ चैत्यालयों को एवं उनमें स्थित सर्व जिनप्रतिमाओं को मैं मन-वचन-काय से नमस्कार करता हूँ।