इसी प्रकार आगे के द्वीप में ८२८८० से दूने सूर्य, चन्द्र प्रथम वलय में हैं और आगे के वलयों में ४-४ से बढ़ते जाते हैं। वलय भी ३२ से दूने ६४ हैं।
पुन: इस द्वीप में ६४ वलयों के सूर्यों की जो संख्या है उससे दुगुने अगले समुद्र के प्रथम वलय में होंगे। पुन: ४-४ की वृद्धि से बढ़ते हुये अंतिम वलय
तक जायेंगे। वलय भी पूर्व द्वीप से दुगुने ही होंगे। इस प्रकार यही क्रम आगे
के असंख्यात द्वीप समुद्रों में सर्वत्र अंतिम स्वयंभूरमण द्वीप व समुद्र तक
जानना चाहिये।
मानुषोत्तर पर्वत से आगे के (स्वयंभूरमण समुद्र तक) सभी ज्योतिर्वासी देवों के विमान अपने-अपने स्थानों पर ही स्थिर हैं, गमन नहीं करते हैं।
इस प्रकार असंख्यात द्वीप, समुद्रों में असंख्यात द्वीप, समुद्रों की संख्या से भी अत्यधिक असंख्यातों सूर्य, चन्द्र हैं एवं उनके परिवार देव-ग्रह, नक्षत्र, तारागण आदि भी पूर्ववत् एक चन्द्र की परिवार संख्या के समान ही असंख्यातों हैं। इन सभी ज्योतिर्वासी देवों के विमानों में प्रत्येक में १-१ जिनमंदिर है। उन असंख्यात जिनमंदिरों एवं उनमें स्थित सभी जिन प्रतिमाओं को मेरा मन, वचन, काय से नमस्कार हो।