मध्यलोक में —१ राजू
सौधर्म, ईशान स्वर्ग के अंत में चौड़ाई —२-५/७ राजू
सानत्कुमार, माहेन्द्र के अंत में चौड़ाई —४-३/७ राजू
ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर के अंत में चौड़ाई —५ राजू
लांतव, कापिष्ठ स्वर्ग के अंत में चौड़ाई —४-३/७ राजू
शुक्र-महाशुक्र स्वर्ग के अंत में चौड़ाई —३-६/७ राजू
सतार-सहस्रार स्वर्ग के अंत में चौड़ाई —३-२/७ राजू
आनत-प्राणत स्वर्ग के अंत में चौड़ाई —२-५/७ राजू
आरण-अच्युत स्वर्ग के अंत में चौड़ाई —२-१/७ राजू
९ ग्रैवेयक, ९ अनुदिश, ५ अनुत्तर एवं सिद्धशिला तक चौड़ाई —१ राजू
अपने-अपने अंतिम इन्द्रक विमान संबंधी ध्वजदण्ड के अग्रभाग तक उन-उन स्वर्गों का अंत समझना चाहिए और लोक का जो अंत है, वही कल्पातीत भूमि का भी अंत है।
जैन सिद्धांत में ८ पृथ्वी मानी गई हैं। ७ नरक की ७ पृथ्वी एवं १ मोक्ष-पृथ्वी, ऐसे पृथ्वी के ८ भेद हैं।