इन दश कोड़ाकोड़ी पल्यों का जो प्रमाण हो उतना पृथक्-पृथक् सागरोपम का प्रमाण होता है। अर्थात् दश कोड़ाकोड़ी व्यवहार पल्यों का एक व्यवहार सागर, दश कोड़ाकोड़ी उद्धार पल्यों का एक उद्धारसागर, एवं दश कोड़ाकोड़ी अद्धापल्यों का एक ‘अद्धासागर’ होता है।
इस ग्रंथ में आगे सर्वत्र यह ध्यान रखना चाहिए कि उत्सेधांगुल से देव, मनुष्य, तिर्यंच, नारकियों के शरीर की ऊँचाई, चारों प्रकार के देवों के निवासस्थान, नगर आदि का प्रमाण होता है।
द्वीप, समुद्र, कुलपर्वत, वेदी, जगती, नदी, सरोवर, कुण्ड, भरत आदि क्षेत्रों का प्रमाण महायोजन से होता है।