नारकी जीव पाप से नरक बिल में उत्पन्न होकर एक मूहूर्त काल में छहों पर्याप्तियों को पूर्ण कर आकस्मिक भय को प्राप्त होता है। पश्चात् वह नारकी जीव भय से कांपता हुआ बड़े कष्ट से चलने के लिए प्रस्तुत होकर और छत्तीस आयुधों के मध्य में गिरकर वहाँ से गेंद के समान उछलता है।
प्रथम पृथ्वी में जीव सात योजन (उत्सेधयोजन) छह हजार पाँच सौ धनुष प्रमाण ऊपर उछलता है, इसके आगे शेष पृथ्वियों के उछलने का प्रमाण क्रम से उत्तरोत्तर दूना-दूना है।