भवनवासी देवों के १० कुलों में पृथक्-पृथक् दो-दो इंद्र होते हैं। ये सब मिलाकर २० इंद्र होते हैं। जो अपनी-अपनी विभूति से शोभायमान हैं।
नागकुमार में – भूतानंद, धरणानंद।
सुपर्णकुमार में – वेणु, वेणुधारी।
द्वीपकुमार में – पूर्ण, वशिष्ठ।
उदधिकुमार में – जलप्रभ, जलकांत।
स्तनितकुमार में – घोष, महाघोष।
विद्युत्कुमार में – हरिषेण, हरिकांत।
दिक्कुमार में – अमितगति, अमितवाहन।
अग्नि कुमार में – अग्निशिखी, अग्निवाहन।
वायुकुमार में – वेलंब, प्रभंजन।
इनमें से प्रत्येकों के प्रथम १० इंद्र दक्षिण इंद्र कहलाते हैं एवं आगे-आगे के १० इंद्र उत्तर इंद्र कहलाते हैं। ये सब इंद्र अणिमा-महिमा आदि ऋद्धियों से युक्त और मणिमय भूषणों से अलंकृत होते हैं।