अपने-अपने भवन में स्थित भवनवासी देवों का अवधिज्ञान ऊर्ध्व दिशा में उत्कृष्टरूप से मेरु पर्वत के शिखर पर्वत को स्पर्श करता है एवं अपने-अपने भवनों के नीचे-नीचे, थोड़े-थोड़े क्षेत्र में प्रवृत्ति करता है। वही अवधिज्ञान तिरछे क्षेत्र की अपेक्षा अधिक क्षेत्र को जानता है। ये असुरकुमार आदि १० प्रकार के भवनवासी देव अनेक रूपों की विक्रिया करते हुए अपने-अपने अवधिज्ञान के क्षेत्र को पूरित करते हैं।