सम्यक्त्व सहित जीव मरकर भवनवासी देवों में उत्पन्न नहीं हो सकता है। कदाचित् जातिस्मरण, देव ऋद्धि दर्शन, जिनबिम्ब दर्शन और धर्म श्रवण के निमित्तों से ये देव सम्यक्त्व रत्न को प्राप्त कर लेते हैं। इन भवनवासी देवों से निकल कर जीव कर्मभूमि में मनुष्यगति अथवा तिर्यंचगति को प्राप्त करते हैं किन्तु ये शलाका पुरुष नहीं हो सकते हैं।