इन व्यंतर देवों के नगर अंजनक, वङ्काधातुक,सुवर्ण, मन:शिलक, वङ्कारजत, हिंगुलक और हरिताल द्वीप में स्थित हैं। इन्द्रोें के समभाग में पाँच-पाँच नगर होते हैं। इनमें से अपने नाम से अंकित नगर मध्य में, एवं प्रभ, कांत, आवर्त और मध्य इन नामों से अंकित नगर पूर्व आदि दिशाओं में होते हैं। जैसे किन्नर, किन्नरप्रभ, किन्नरकांत, किन्नरावर्त और किन्नरमध्य ये पाँच नगर के नाम हैं। इसमें किन्नर नगर मध्य में है शेष ४ नगर पूर्व आदि दिशाओं के क्रम से हैं। इन द्वीपों में दक्षिण इंद्र दक्षिण भाग में एवं उत्तर इंद्र उत्तर भाग में निवास करते हैं।
समचौकोण से स्थित इन पुरों के सुवर्णमय कोट हैं। इन नगरों के बाहर पूर्व आदि दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में अशोक, सप्तच्छद, चम्पक तथा आम्रवृक्षों के वन समूह स्थित हैं। ये वन समूह एक लाख योजन लंबे और पचास हजार योजन विस्तृत अनेक प्रकार की विभूतियों से सुशोभित हैं। इन नगरों में सुवर्ण, चाँदी एवं रत्नों के प्रासाद हैं। इन नगरों में अपने परिवार से संयुक्त इंद्र बहुत प्रकार की विभूतियों से क्रीड़ा करते रहते हैं।