तिगिंछ सरोवर के दक्षिण द्वार से निकल कर यह हरित नदी ७३२१-१/१९ योजन तक पर्वत पर आती है पश्चात् गोमुखाकार प्रणालिका द्वार से नीचे गिरती है। यहाँ पर भी पर्वत की तलहटी में गिरने के स्थान में कुंड है उस पर पूर्वोक्त भवन के ऊपर जिन प्रतिमा स्थित है। इस जिनेन्द्र प्रतिमा का अभिषेक करते हुए के समान यह हरित् नदी गिरती है पुन: कुंड के दक्षिण तोरण द्वार से निकलकर नाभिगिरि-वृत्त वैताड्य को दूर से ही छोड़कर प्रदक्षिणा के आकार से होती हुई हरिवर्ष क्षेत्र में बहती हुई पूर्व की ओर चली आती है। यह नदी छप्पन हजार परिवार नदियों से युक्त और नील पर्वत के दक्षिण भागों में होती हुई जम्बूद्वीप की जगती के बिल में प्रवेश करती हुई पूर्व लवण समुद्र में प्रवेश करती है। इस हरित् नदी का विस्तार व गहराई आदि हरिकान्ता नदी के सदृश है।
इन जघन्य, मध्यम भोग भूमियों के नदी-सरोवर आदिक स्थान जलचर जीवों से रहित होते हैं।