पांडुक वन के नीचे छत्तीस हजार योजन जाकर सौमनस नामक वन मेरु को वेष्टित करके स्थित है। यह सौमनस वन पाँच सौ योजन विस्तृत सुवर्णमय वेदिकाओं से वेष्टित चार गोपुरों से युक्त और क्षुद्रद्वारों से रमणीय है। इस वन में नागकेसर, तमाल, हिंताल, कदली, बकुल, लवली, लवंग, चंपक और पनस आदि वृक्षों से व्याप्त, सुरकोयलों के मधुर शब्दों से मुखरित, मोर आदि पक्षियों से रमणीय, विद्याधर व देवयुगलों से संकीर्ण और विविध प्रकार की वापियों से युक्त है।
इस वन के भीतर सुमेरु के पास पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर दिशाओं में क्रम से वङ्का, वङ्काप्रभ, सुवर्ण और सुर्वणप्रभ नामक चार ‘पुर’ हैं। ये पुर पांडुकवन के पुरों की अपेक्षा दुगुने विस्तार आदि से सहित, उत्तम रत्नों से रचित, कालागरु की सुगंधि से व्याप्त हैंं। इन पुरों के मध्य में सौधर्म इंद्र के सोम, यम, वरुण और कुबेर लोकपाल पूर्वोक्त वैभव से युक्त होकर क्रीड़ा करते हैं।