सुनो प्राचीन कहानी, सुगंधदशमी की कहानी,
भव्यात्माओं! बड़ी शान्ति से।।टेक.।।
शीतलनाथ शीतलनाथ जपो बारम्बार, जिनसे शीतलता मिलती है अपार।
जिनके नाम में है छिपा बड़ा चमत्कार, उनके चरणों में कोटी कोटी नमस्कार।।सुनो..।।
एक राजा-रानी चले वनक्रीड़ा करने।
उन्हें मासोपवासी मुनि मिले पथ में।। राजा जी ने रानी को वापस कर दिया,
मुनिवर के आहार का आदेश कर दिया।।सुनो.।।१।।
आ तो गई रानी लेकिन क्रोध भर गया,
उसने कड़वी तूमड़ी का आहार दे दिया।
मुनिवर की समाधि हुई राजा ने जाना,
रानी की निन्दा की व महलों से निकाला।।सुनो.।।२।।
आर्त्तध्यान से मरी वह रानी बेचारी,
नरकादि के दु:ख भोग रही वो नारी।
एक बार वह कन्या दुर्गन्धा हो गई,
अपने पापों के कारण बदनाम हो गर्ई।।सुनो.।।३।।
एक मुनि ने उसे सम्बोधित कर दिया,
उस कन्या को धूपदशमी व्रत दे दिया।
श्रद्धा से उस बालिका ने व्रत को कर लिया,
आगे जाकर सेठ के घर जन्म ले लिया।।सुनो.।।४।।
उसकी असली माता थोड़े दिन में मर गई,
सौतेली माँ व सौतेली बहन मिल गई।
सेठजी से उसकी वे बुराई करती थीं,
दोनों मिल के उसको सताया करती थीं।।सुनो.।।५।।
फिर आगे देखिए, क्या होता है……
जय जय शीतलनाथ, बोलो जय जय शीतलनाथ-२।
सुगंधदशमी व्रत की कथा, है इसमें इक कन्या की व्यथा।
दुर्गन्धा से सुगन्धा बन गई, व्रत पालन से गती सुधर गई।।जय शीतलनाथ…..।।१।।
तिलकमती नामक वह कन्या, घर की लक्ष्मी थी वह धन्या।
तेजोमति थी बहन थी उसकी, सौतेली माँ की पुत्री थी।।जय शीतलनाथ…..।।२।।
अति संक्षेप में कहूँ कहानी, दो बहनों की है भाग्य निशानी।
जब विवाह का समय था आया, सेठानी ने षड्यंत्र रचाया।।जय शीतलनाथ…..।।३।।
तिलकमती को शमशान में भेजा, तेजोमति को ससुराल में भेजा।
तब शमशाम में राजा आया, तिलकमती के संग ब्याह रचाया।।जय शीतलनाथ…..।।४।।
सेठानी षड्यंत्रकारिणी, तिलकमती को कहे दुराचारिणी।।
किन्तु सच्चाई सामने आई, तिलकमती ने प्रशंसा पाई।।जय शीतलनाथ…..।।५।।
राजा की पट्टरानी बन गई, उसकी सारी विपदा टल गई।
जिसने भी जानी व्रत की महिमा, बढ़ गई उसके तप की गरिमा।।जय शीतलनाथ…..।।६।।
तो बंधुओं और प्यारी बहनों!
सुगंधदशमी व्रत को-२,
ग्रहण सभी तुम कर लो….सुगंधदशमी व्रत को।।टेक.।।
भादों शुक्ला दशमी को, यह पावन व्रत आता है।
उपवास या एकाशन से, इस व्रत को किया जाता है।
दश वर्षों तक व्रत करके उद्यापन विधिवत् कर लो।।सुगंध दशमी….।।१।।
व्रत में शीतलनाथ प्रभु का, अभिषेक व पूजन कर लो।
धूपघटों में धूप जलाकर, मन को सुगंधित कर लो।।
दश सौभाग्यवती को माला पहनाकर दश फल दो।।सुगंध दशमी….।।२।।
गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माता की शिष्या ‘‘चंदनामती’’।
भादों सुदि दशमी को यह संक्षिप्त कथा मुम्बई में लिखी।।
वीर संवत् पच्चिस सौ तेंतालिस दिन गुरुवार है समझो।।सुगंध दशमी….।।३।।