नंदन वन के नीचे पाँच सौ योजन प्रमाण जाकर श्री भद्रसाल वन है। इस वन का विस्तार क्रम से पूर्व व पश्चिम में २२००० योजन है तथा दक्षिण-उत्तर में २५० योजन प्रमाण है। इस वन में मेरु पर्वत के पास पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर दिशा में एक-एक उत्तम जिन भवन हैं। इन जिन भवनों का विस्तार ५० योजन, लंबाई १०० योजन एवं ऊँचाई ७५ योजन प्रमाण है। इन जिन भवनों का विशेष वर्णन पांडुक वन के जिन भवनों के सदृश समझना चाहिए। इस भद्रसाल वन के चारों ओर उत्तम तोरणों से शोभित श्रेष्ठ द्वार समूहों से रमणीय, अट्टालिकादि से सहित सुवर्णमय वेदी है, इस वेदी की ऊँचाई चारों तरफ एक योजन और विस्तार एक हजार धनुष प्रमाण है।
श्रीखण्ड, अगरु, केशर, अशोक, कर्पूर, तिलक, कदली, अतिमुक्त, मालती और हारिद्र प्रभृति वृक्षों से व्याप्त, पुष्करिणियों से रमणीय, उत्तम सरोवर व भवनों के समूह से सहित यह भद्रसाल वन कूटों और जिनपुरों से सुशोभित है। मोर, शुक, कोयल, सारस और हंस इन पक्षियों के मधुर शब्दों से व्याप्त तथा विविध प्रकार के फल-फूलों से भरित वह भद्रसाल वन सुरम्य है।