यमक पर्वतों के आगे ५०० योजन जाकर पाँच द्रह हैं। प्रत्येक द्रह पाँच सौ योजन के अंतराल से हैं इनके नाम नील, उत्तरकुरु, चंद्र, ऐरावत और माल्यवान् हैं। ये द्रह सीतोदा के द्रह सदृश हैं। अंतिम द्रह से २०९२-२/१९ योजन दक्षिण भाग में उत्तम वेदी है। यह वेदी पूर्व-पश्चिम में गजदंत पर्वतों से संलग्न, एक योजन ऊँची, १/८ योजन विस्तृत, प्रचुर मार्ग तोरण द्वार आदि रचनाआें एवं द्वार के उपरिम भाग में स्थित जिन भवनों से सहित है।
कितने ही आचार्य तथा त्रिलोकसार के कर्त्ता श्री नेमिचंद्राचार्य मेरु पर्वत के पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर ऐसी प्रत्येक दिशा में सीता तथा सीतोदा नदी के मध्य पाँच-पाँच सरोवरों को स्वीकार करते हैं। उनके उपदेश में एक-एक सरोवर के दोनों किनारों में से प्रत्येक किनारे पर पाँच-पाँच कांचन शैल स्थित हैं। त्रिलोकसार में इन सरोवरों की चौड़ाई सीता, सीतोदा नदी की चौड़ाई के समान मानी है। लोक विभाग में कहा है कि इन विशाल सरोवरों के तट रत्नों से विचित्र हैं, इनका मूल भाग वङ्कामय है। उनके भीतर पद्म भवनों में नागकुमारियाँ रहती हैं। जल से पद्म की ऊँचाई आधा योजन है। वह एक योजन ऊँचा और उतना ही विस्तृत है उसकी कर्णिका का विस्तार एक कोस और ऊँचाई भी एक कोस है।