मंदर पर्वत के पूर्व भाग में पूर्व विदेह नामक सोलह क्षेत्र एवं पश्चिम भाग में पश्चिम विदेह नामक सोलह क्षेत्र स्थित हैं। सीता नदी के दोनों पार्श्व भागों में चार-चार वक्षार पर्वत और तीन-तीन विभंग नदियों से सीमित आठ-आठ क्षेत्र हैं। सीतोदा के दोनों पार्श्व भागों में चार-चार वक्षार पर्वत और तीन-तीन विभंग नदियों से सीमित आठ-आठ क्षेत्र हैं। सीतोदा के दोनों पार्श्व भागों में चार-चार वक्षार पर्वत और तीन-तीन विभंग नदियों से सीमित आठ-आठ क्षेत्र हैं। दोनों ही विदेहों में एक-एक को व्यवस्थित करके वक्षारगिरि और विभंग नदियाँ स्थित हैं।
ये क्षेत्र सीता नदी के उत्तर किनारे के भद्रसाल वेदी से पूर्व और नीलपर्वत से दक्षिण भाग में प्रदक्षिण रूप से स्थित हैं। उनके नाम क्रम से कच्छा, सुकच्छा, महाकच्छा, कच्छकावती, आवर्ता, लांगलावती, पुष्कला, और पुष्कलावती हैं। वत्सा, सुवत्सा, महावत्सा, वत्सकावती, रम्या, सुरम्यका, रमणीया, मंगलावती ये आठ क्षेत्र सीता नदी के दक्षिण और निषध पर्वत के उत्तर में कहे गये हैं। पद्मा, सुपद्मा, महापद्मा, पद्मकावती, शंखा, नलिना, कुमुदा, सरिता ये आठ क्षेत्र निषध से उत्तर एवं सीतोदा के दक्षिण भाग में स्थित हैं। वप्रा, सुवप्रा, महावप्रा, वप्रकावती, गंधा, सुगंधा, गंधिला और गंध मालिनी ये आठ क्षेत्र सीतोदा के उत्तर एवं नील पर्वत के दक्षिण में स्थित हैं इन क्षेत्रों का पूर्वापर विस्तार २२१२-७/८ योजन प्रमाण है एवं लम्बाई १६५९२-२/१९ योजन प्रमाण है।