शिखरी पर्वत के उत्तर और जम्बूद्वीप की जगती के दक्षिण भाग में भरत क्षेत्र के सदृश ऐरावत क्षेत्र स्थित है। इस क्षेत्र के मध्य भाग में विजयार्ध पर्वत के ऊपर स्थित कूटों और नदियों के नाम भिन्न हैं। सिद्ध, ऐरावत, खण्डप्रपात, माणिभद्र, विजयार्ध, पूर्णभद्र, तिमिश्रगुह, ऐरावत और वैश्रवण ये नौ कूट यहाँ के विजयार्ध पर्वत पर हैं।
शिखरी पर्वत के ऊपर स्थित महापुण्डरीक द्रह के पूर्वद्वार से निकल कर ‘रक्ता’ नामक नदी रक्तकुण्ड में गिरती है पुन: वह लवणसमुद्र में प्रवेश करती है। उसी द्रह के पश्चिम तोरण द्वार से ‘रक्तोदा’ नदी निकलती है और रक्तोद कुण्ड में गिरती है। पश्चात् वह कुण्ड से निकल कर पश्चिम मुख होती हुई अनेक नदियों से सहित होकर द्वीप की जगती के बिल से लवणसमुद्र में प्रवेश करती है। यहाँ ऐरावत क्षेत्र में भी समुद्र की तरफ का आर्यखंड है बाकी पाँच म्लेच्छखंड हैं उनमें भी मध्य के म्लेच्छखंड में वृषभ पर्वत है। वहाँ के सभी चक्रवर्ती उस पर अपनी प्रशस्ति लिखते हैं। यहाँ ऐरावत के आर्यखंड में भी भरत के आर्यखंड के समान छह कालों का परिवर्तन होता रहता है।
गंगा, रोहित, हरित, सीता, नारी, सुवर्णकूला और रक्ता ये सात नदियाँ पूर्वदिशा में जाती हैं। सिंधु, रोहितास्या, हरिकान्ता, सीतोदा, नरकान्ता, रूप्यकूला और रक्तोदा ये सात नदियाँ पश्चिम समुद्र में जाती हैं।इस प्रकार संक्षेप में जम्बूद्वीप के क्षेत्र पर्वतों का वर्णन हुआ है। विशेष बात यह है कि भरत, हैमवत, हरि और विदेह का देवकुरु इनकी जैसी व्यवस्था है वैसी ही विदेह के उत्तर कुरु, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत क्षेत्रों की व्यवस्था है।