इस द्वितीयकाल में मध्यम भोग भूमि की व्यवस्था होती है यहाँ के मनुष्यों की आयु दो पल्य और शरीर की अवगाहना दो कोस रहती है शरीर का वर्ण चंद्रमा के सदृश धवल रहता है। इनके पृष्ठ भाग की हड्डियाँ एक सौ अट्ठाईस रहती हैं उत्तम संस्थान एवं संहनन से युक्त ये जीव तीन दिन में बहेड़ा के समान आहार लेते हैं। इस काल में बाल युगल अंगूठा चूसने में ५-५ दिन व्यतीत करते हैं अर्थात् ३५ दिनों में तरुण होकर सम्यक्त्व ग्रहण के योग्य हो जाते हैं। बाकी वर्णन प्रथम कालवत् है। इसमें भी आयु बल आदि घटते जाते हैं।