अब यहाँ से आगे पुण्योदय से भरत क्षेत्र में मनुष्यों में श्रेष्ठ और संपूर्ण लोक में प्रसिद्ध त्रेसठ शलाका पुरुष उत्पन्न होने लगते हैं। चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नव बलभद्र, नव वासुदेव और नव प्रति वासुदेव ये त्रेसठ शलाका पुरुष हैं। नाभिराय के पुत्र भी वृषभदेव प्रथम तीर्थंकर हुये हैं ऐसे ही महावीर पर्यंत चौबीस तीर्थंकर धर्म तीर्थ के प्रवर्तक हैं। भरत, सगर, मघवा, सनत्कुमार, शांति, कुंथु, अरह, सुभौम, पद्म, हरिषेण, जयसेन और ब्रह्मदत्त ये बारह चक्रवर्ती हुये हैं।
विजय, अचल, सुधर्म, सुप्रभ, सुदर्शन, नंदी, नंदिमित्र, राम और पद्म ये नव बलभद्र हुये हैं। त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयंभू, पुरुषोतम, पुरुषसिंह, पुंडरीक, दत्त, लक्ष्मण और कृष्ण ये नव नारायण हैं। अश्वग्रीव, तारक, मेरक, मधुवैâटभ, निशुंभ, बलि, प्रहरण, रावण और जरासंध ये नव प्रतिनारायण हैं। ये भरतक्षेत्र के तीर्थंकर पंच महाकल्याण से पृथ्वी तल पर विख्यात रहते हैं।
इस हुंडावसर्पिणी के निमित्त से नौ रुद्र एवं नव नारद भी उत्पन्न होते हैं। इन सबका विस्तृत वर्णन तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ से देख लेना चाहिए।
चौबीस तीर्थंकरों के समयों में अनुपम आकृति के धारक बाहुबलि को प्रमुख करके चौबीस कामदेव होते हैं।
तीर्थंकर उनके माता-पिता, चक्रवर्ती, बलदेव, नारायण, प्रतिनारायण, रुद्र, नारद, कामदेव और कुलकर पुरुष यह सब भव्य होते हैं, नियम से सिद्ध पद को प्राप्त करते हैं। तीर्थंकर तो उसी भव से मोक्ष प्राप्त करते हैं अन्यों के लिए उसी भव का नियम नहीं है।
भगवान ऋषभदेव के मुक्त हो जाने के पश्चात् पचास लाख करोड़ सागरों के बीतने पर अजितनाथ तीर्थंकर ने मोक्ष पद प्राप्त किया। भगवान् ऋषभदेव ने तीसरे काल में ही मोक्ष प्राप्त किया है और भगवान् के समय तृतीय काल में ही कर्मभूमि की व्यवस्था हो गयी थी। यह बात केवल इस हुंडावसर्पिणी के निमित्त से ही हुई है।