चतुर्थ काल में तीन वर्ष, आठ मास, एक पक्ष अवशिष्ट रहने पर श्री वीर प्रभु सिद्ध पद को प्राप्त हुये हैं। अर्थात् वीर भगवान के निर्वाण होने के पश्चात् तीन वर्ष, आठ मास और एक पक्ष के व्यतीत हो जाने पर दुष्षमाकाल नामक पंचम काल प्रवेश करता है। इस पंचम काल के प्रवेश में मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु एक सौ बीस वर्ष, ऊँचाई सात हाथ और पृष्ठ भाग में हड्डियाँ चौबीस होती हैं। जिस दिन भगवान महावीर स्वामी मुक्त हुये उसी दिन गौतम गणधर को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। गौतम स्वामी के मुक्त होने के बाद, सुधर्म स्वामी, उनके बाद जम्बूस्वामी केवली हुये। ये सब चतुर्थ काल के ही जन्म लेने वाले हैं। जम्बू स्वामी के मोक्ष जाने के पश्चात् अन्य कोई मोक्ष नहीं गये।
अनंतर ग्यारह अंग चौदह पूर्व के पारंगत श्रुतकेवली, कुछ-कुछ अंगों के धारक, पुन: अंगों के अंश के धारक आचार्य परमेष्ठी होते रहे हैं। आज भी श्रमण परम्परा को अक्षुण्ण रखने वाले दिगम्बर, मुनिराज विहार कर रहे हैं। इस दुष्षम काल में मनुष्यों की आयु, ऊँचाई, धर्म आदि का ह्रास होता रहता है। आगे इस काल के अंत में इक्कीसवां कल्की उत्पन्न होता है उसके समय में ‘वीरांगज’ नामक एक मुनि, ‘सर्वश्री’ नामक आर्यिका, अग्निदत्त श्रावक और पंगुश्री श्राविका होगी। एक दिन कल्की अपने मंत्रियों से कहता है कि मंत्रिवर! ऐसा कोई पुरुष तो नहीं है जो मेरे वश में न हो। तब मंत्री कहता है कि हे राजन्! एक मुनि आपके वश में नहीं है। तब कल्की राजा की आज्ञा होती है कि तुम उस मुनि के आहार में प्रथम ग्रास को शुल्क के रूप में ग्रहण करो। तत्पश्चात् कल्की की आज्ञा से प्रथम ग्रास के माँगे जाने पर मुनीन्द्र तुरंत उसे देकर और अंतराय करके वापस चले जाते हैं एवं अवधिज्ञान को भी प्राप्त हो जाते हैं उसी समय मुनिराज आर्यिका और श्रावक, श्राविका को बुलाकर प्रसन्नचित्त से कहते हैं कि अब दुष्षमा काल का अंत आ चुका है, तुम्हारी और हमारी तीन दिन की आयु शेष है और यह अंतिम कल्की है।
तब वे चारों जन चार प्रकार के आहार और परिग्रहादि को जन्मपर्यंत छोड़कर सन्यास को ग्रहण कर लेते हैं। ये सब कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के अंत में-अमावस्या के दिन स्वातिनक्षत्र में सूर्य के उदित रहने पर सन्यास को धारण करके समाधिमरण को प्राप्त कर लेते हैं और सौधर्म स्वर्ग में देव हो जाते हैं। उसी समय मध्यान्ह काल में क्रोध से सहित कोई असुरकुमार जाति का उत्तम देव कल्की राजा को मार डालता है और सूर्यास्त समय अग्नि नष्ट हो जाती है यह कल्की धर्मद्रोह से मरकर पहली नरक पृथ्वी में चला जाता है।