पुन: दुष्षमाकाल प्रवेश करता है। इस काल में मनुष्य तिर्यंचों का आहार बीस वर्ष तक पहले के समान रहता है। इस काल के प्रथम प्रवेश में उत्कृष्ट आयु बीस वर्ष और ऊँचाई तीन हाथ प्रमाण होती है इस काल में एक हजार वर्षों के शेष रहने पर भरतक्षेत्र में चौदह कुलकरों की उत्पत्ति होने लगती है उसमें कनक, कनकप्रभ आदि कुलकरों में अंतिम कुलकर पद्मपुंगव नाम के होते हैं इनमें से प्रथम कुलकर की ऊँचाई चार हाथ और अंतिम कुलकर की ऊँचाई सात हाथ होती है उस समय श्रेष्ठ औषधि, वनस्पति आदि के होते हुए भी अग्नि नहीं रहती है अत: मथ करके अग्नि उत्पन्न करो, अन्न पकाओं आदि रूप से शिक्षा देते हैं वे पुरुष अत्यन्त म्लेच्छ होते हैं विशेष यह है कि पद्मपुंगव कुलकर के समय से विवाह विधियाँ प्रचलित हो जाती हैं।