चतुर्थ काल के प्रवेश में ऊँचाई सात हाथ और आयु एक सौ बीस वर्ष प्रमाण होती है। इस समय मनुष्य के पृष्ठ भाग की हड्डियाँ चौबीस होती हैं। तथा मनुष्य पाँचवर्ण वाले शरीर से युक्त, मर्यादा, विनय, लज्जा से सहित संतुष्ट और सम्पन्न होते हैं। इस काल में चौबीस तीर्थंकर होते हैं उनमें से अंतिम कुलकर का पुत्र अन्तिम तीर्थंकर होता है उस समय से यहाँ विदेह क्षेत्र जैसी वृत्ति होने लगती है।
महापद्म सुरदेव से लेकर अनंतवीर्य पर्यंत चौबीस तीर्थंकर होते हैं। इनमें से प्रथम तीर्थंकर की ऊँचाई सात हाथ और आयु एक सौ सोलह वर्ष प्रमाण होती है तथा अंतिम तीर्थंकर की आयु एक पूर्वकोटि और ऊँचाई पाँच सौ धनुष प्रमाण होती है।
इस काल में बारह चक्रवर्ती, नव बलभद्र, नव नारायण, नव प्रति- नारायण उत्पन्न होते हैं। ये त्रेसठ शलाका पुरुष एक कोड़ा-कोड़ी सागरोपम प्रमाण इस तृतीय काल में क्रम से उत्पन्न होते हैं। यह काल ब्यालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ा-कोड़ी सागर प्रमाण है। इस काल के अंत में मनुष्यों की आयु एक पूर्व कोटि प्रमाण, ऊँचाई पाँच सौ पच्चीस धनुष और पृष्ठ भाग की हड्डियाँ चौंसठ होती हैं। उस समय नर-नारी देव एवं अप्सराओं के सदृश होते हैं।