इसके बाद सुषमा नामक काल प्रवेश करता है। इस काल के प्रथम प्रवेश में मनुष्य तिर्यंचों की आयु आदि पूर्व के ही समान होती है परन्तु काल स्वभाव से उत्तरोतर बढ़ती जाती है। उस समय के नर-नारी दो कोस ऊँचे, पूर्ण चंद्रमा के सदृश मुख वाले, बहुत विनय एवं शील से सम्पन्न होते हैं एवं मनुष्यों के पृष्ठ भाग की हड्डियाँ एक सौ अट्ठाईस हैं। इस समय यहाँ पर मध्यम भोग भूमि की व्यवस्था रहती है।