लवण समुद्र में कुमानुषों के ४८ द्वीप हैं। इनमें से २४ द्वीप तो अभ्यंतर भाग में एवं २४ द्वीप बाह्य भाग में स्थित हैं।जम्बूद्वीप की जगती से ५०० योजन आगे जाकर ४ द्वीप चारों दिशाओं में और इतने ही योजन जाकर चार द्वीप चारों विदिशाओं में हैंं। जम्बूद्वीप की जगती से ५५० योजन आगे जाकर दिशा-विदिशा की अंतर दिशाओं में ८ द्वीप हैं। हिमवन् विजयार्ध पर्वत के दोनों किनारों में जगती से ६०० योजन जाकर ४ द्वीप एवं उत्तर में शिखरी और विजयार्ध के दोनों पार्श्व भागों से ६०० योजन अंदर समुद्र में जाकर ४ द्वीप हैं।दिशागत द्वीप १०० योजन प्रमाण विस्तार वाले हैं ऐसे ही विदिशा गत द्वीप ५५ योजन विस्तृत, अंतरदिशागत द्वीप ५० योजन विस्तृत एवं पर्वत के पार्श्वगत द्वीप २५ योजन विस्तृत हैं।
ये सब उत्तम द्वीप वनखंड, तालाबों से रमणीय, फलफूलों के भार से संयुक्त तथा मधुर रस एवं जल से परिपूर्ण हैं यहाँ कुभोग भूमि की व्यवस्था है यहाँ पर जन्म लेने वाले मनुष्य ‘कुमानुष’ कहलाते हैं और विकृत आकार वाले होते हैं। पूर्वादिक दिशाओं में स्थित चार द्वीपों के कुमानुष क्रम से एक जंघा वाले, पूंछ वाले, सींग वाले और गूंगे होते हैं। आग्नेय आदि विदिशाओं के कुमानुष क्रमश: शष्कुलीकर्ण, कर्ण प्रावरण, लम्बकर्ण और शशकर्ण होते हैं। अतंर दिशाओं में स्थित आठ द्वीपों के वे कुमानुष क्रम से सिंह, अश्व, श्वान, महिष, वराह, शार्दूल, घूक और बंदर के समान मुख वाले होते हैं। हिमवान् पर्वत के पूर्व-पश्चिम किनारों के क्रम से मत्स्य मुख, कालमुख तथा दक्षिण विजयार्ध के किनारों में मेषमुख, गोमुख कुमानुष होते हैं। शिखरी पर्वत के पूर्व-पश्चिम किनारों पर क्रम से मेघमुख व विद्युन्मुख तथा उत्तर विजयार्ध के किनारों पर आदर्श मुख व हस्तिमुख कुमानुष होते हैं। इन सब में से एकोरुक कुमानुष गुफाओं में रहते हैं और मिष्ट मिट्टी को खाते हैं। शेष कुमानुष वृक्षों के नीचे रहकर फलफूलों से जीवन व्यतीत करते हैं।
इस प्रकार से दिशागत द्वीप ४, विदिशागत ४, अंतरदिशागत ८, पर्वत तटगत ८। ४±४±८±८·२४ अंतर्द्वीप हुये हैं, ऐसे ही लवणसमुद्र के बाह्य भाग के भी २४ द्वीप मिलकर २४±२४·४८ अंतर्द्वीप लवण समुद्र में हैं।