नंदीश्वर द्वीप की पूर्व दिशा में बहुमध्य भाग में ‘अंजनगिरि’ इस नाम से प्रसिद्ध, उत्तम इद्रनील मणिमय श्रेष्ठ पर्वत है यह पर्वत एक हजार योजन नींव से सहित, चौरासी हजार योजन ऊँचा, सर्वत्र चौरासी हजार योजन विस्तृत गोल है। उनके मूल व ऊपर भाग में तटवेदियाँ व विचित्र वनखंड हैं। इस पर्वत के चारों ओर चार दिशाओं में चार सरोवर हैं। जो कि प्रत्येक १००००० योजन विस्तार वाले चतुष्कोण हैं ये सरोवर एक हजार योजन गहरे, टंकोत्कीर्ण, जलचर जीवों से रहित स्वच्छ जल से पूर्ण, कमल कुवलय आदि की सुंगधि से युक्त हैं। पूर्वादि दिशाओं के क्रम से नंदा, नंदवती, नंदोत्तरा, नंदिघोषा ये इन सरोवरों (वापियों) के नाम हैं। प्रत्येक वापी की चारों दिशाओं में से प्रत्येक के क्रम से अशोकवन, सप्तच्छद, चंपक और आम्रवन नाम से चार वन हैं। ये वन खंड १००००० योजन लम्बे ५०००० योजन चौड़े हैं। इनमें से प्रत्येक वन में वन के नाम से संयुक्त चैत्य वृक्ष हैंंं।
वापियों के बहुमध्य भाग में ही दही के समान वर्ण वाले एक-एक दधिमुख नामक उत्तम पर्वत हैं। प्रत्येक पर्वत की ऊँचाई १०००० योजन एवं विस्तार भी इतना ही है, ये पर्वत गोलाकार हैं इनकी नींव १००० योजन वङ्कामय है। इनके उपरिम तट में तटवेदियाँ और विविध प्रकार के वन हैं। वापियों के दोनों बाह्य कोनों में से प्रत्येक के दधिमुखों के सदृश सुवर्णमय ‘रतिकर ’ नामक दो पर्वत हैं प्रत्येक रतिकर पर्वत की ऊँचाई और विस्तार १००० योजन है, नींव २५० योजन है।