पुष्कर द्वीपस्थ मानुषोत्तर पर्वत से उधर अर्ध पुष्कर द्वीप से लेकर स्वयंभूरमण द्वीपस्थ स्वयंप्रभ पर्वत के इधर-उधर असंख्यातों द्वीपों में भोगभूमि व्यवस्था है यहाँ के तिर्यंच युगलिया उत्पन्न होते हैं। एक पल्य आयु से सहित ये भोगभूमिज तिर्यंच जघन्य भोगभूमि के सुखों का अनुभव करते हैं। स्वयंप्रभ पर्वत के बाह्य अर्ध स्वयंभूरमण द्वीप और स्वयंभूरमण समुद्र में तिर्यंचों में कर्मभ्ूामि की व्यवस्था है। इन कर्मभूमिज जलचर, स्थलचर, नभचर आदि तिर्यंचों में सम्यक्त्व ग्रहण करने की एवं अणुव्रत पालन करके देश संयत होने की योग्यता है। वहाँ पर कदाचित् किन्हीं पंचेन्द्रिय तिर्यंचों को जातिस्मरण से कदाचित् देवों के द्वारा धर्मोपदेश का लाभ मिलने से सम्यक्तव हो जाता है कदाचित् देशव्रती भी बन जाते हैं ऐसे सम्यक्त्वी और देशव्रती तिर्यंच वहाँ पर असंख्यातों हैं। जो कि मरकर देवगति को प्राप्त कर लेते हैं। मध्य के असंख्यातों द्वीपों के भोगभूमिज तिर्यंच भी मरकर भवनत्रिक में अथवा यदि सम्यक्त्व सहित हैं तो सौधर्म युगलस्वर्ग तक जन्म लेते हैं।