तिर्यंचों की उत्पत्ति गर्भ और सम्मूर्च्छन जन्म से ही होती है। इनकी योनियाँ ६२ लाख प्रमाण हैं-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, नित्य निगोद, इतर निगोद इन छहों की ७-७ लाख, वनस्पति की १० लाख, विकलत्रय की ६ लाख, पंचेन्द्रियों की ४ लाख इस प्रकार से ७²६·४२±१०±६±४·६२ लाख हैं।
सभी भोग भूमिज तिर्यंचों में केवल एक सुख ही होता है कर्मभूमिज तिर्यंचों के सुख-दु:ख दोनों होते हैं। संज्ञी को छोड़कर शेष-एकेन्द्रिय से चार इंद्रिय तक एवं असंज्ञी पंचेन्द्रियों को एक मिथ्यात्व गुणस्थान ही रहता है। भरत ऐरावत के भीतर ५-५ आर्यखंडों में, पाँच विदेहों के १६० आर्यखंडों में, विद्याधर श्रेणियों में और स्वयंप्रभ पर्वत के बाह्य भाग के तिर्यंचों में ‘देशविरत’ तक पाँच गुणस्थान हो सकते हैंं। भोगभूमिज तिर्यंचों के अविरत नामक चार तक गुणस्थान ही होते हैं।