इन ज्योतिर्वासी देवों में सम्यग्दृष्टी का जन्म नहीं होता है। जिन्होंने मिथ्यात्व सहित पुण्य का उपार्जन किया है। या पंचाग्नि तप आदि काय क्लेश से मिथ्या तप किया है। इत्यादि कारणों से वहाँ उत्पन्न होते हैं। इन देवों में जातिस्मरण, धर्मश्रवण, जिन पंचकल्याणक आदि जिन महिम दर्शन, देवैश्वर्य दर्शन आदि कारणों से सम्यक्त्व उत्पन्न हो सकता है। वहाँ के देव मिथ्यात्व सहित संक्लेश परिणामों से मरकर कदाचित् एकेन्द्रिय पृथ्वी, जल, वनस्पति पर्याय में भी जन्म ले लेते हैं। वहाँ से सम्यक्त्व सहित मरकर कर्मभूमिज आर्य मनुष्य ही होते हैं।