६१ इंद्रक विमानों के ऋतु, विमल, चंद्र, आदि उत्तम-उत्तम नाम हैं। अंतिम ६३ वें का नाम सवार्थसिद्धि है। पहला इंद्रक ४५००००० योजन का है और अंतिम इंद्रक १००००० योजन का है दूसरे से लेकर ६० वें तक, मध्यम प्रमाण है अर्थात् प्रथम इंद्रक ४५ लाख का है उसमें ७०९६७-२३/३१ योजन को घटा दीजिये दूसरे इंद्रक का प्रमाण ४४२९०३२-८/३१ योजन आता है। ऐसे ही ६० वें इंद्रक तक ७०९६७-२३/३१ योजन प्रमाण को घटाते जाइये। अंतिम इंद्रक १००००० योजन का हो जायेगा।
ये सभी इंद्रक एक के ऊपर एक होने से भवनों के खन के समान हैं। एक-एक इंद्रक का आपस में अंतराल असंख्यात योजन है।