उस श्रेणीबद्ध विमान के बहुमध्य भाग में सौधर्म नाम से प्रसिद्ध सौधर्मेन्द्र का नगर है जो समचतुष्कोण ८४००० योजन प्रमाण है। इसे ‘राजांगण’ भी कहते हैं। इस राजांगण भूमि के चारों ओर दिव्य सुवर्णमय तटवेदी है जिसे ‘प्राकार’ भी कहते हैं। यह प्राकार ३०० यो. ऊँचा, ५० योजन विस्तृत एवं ५० योजन नींव से सहित है।