इंद्र के नगर के बाहर पाँच कोट-प्राकार माने गये हैं। उन्हें वेदी भी कहते हैं। इन पाँच प्राकारों के बीच-बीच में चार अंतराल हो जाते हैं अर्थात् प्रथम प्राकार और दूसरे प्रकार के मध्य में एक अन्तराल, दूसरे तीसरे के मध्य में दूसरा अंतराल, तीसरे-चौथे प्राकार के मध्य में तीसरा अंतराल, चौथे-पाँचवें प्राकार के मध्य चौथा अंतराल है। प्रथम अंतराल १३००००० योजन का है, द्वितीय अंतराल ६३००००० योजन है, तीसरा अंतराल ६४००००० योजन एवं पाँचवां अंतराल ८४००००० योजन वाला है।
प्रथम अंतराल में सौधर्म इंद्र के आत्मरक्षक देव सपरिवार रहते हैं। दूसरे अंतराल में तीनों पारिषद जाति के देव सपरिवार अपने-अपने भवनों में निवास करते हैं। तृतीय अंतराल में सभी सामानिक देव सपरिवार निवास करते हैं। चतुर्थ अंतराल में अपने-अपने आरोहक, अनीक आभियोग्य, किल्विषक, प्रकीर्णक तथा त्रायिंस्त्रश देव सपरिवार रहते हैं।