नवग्रैवेयक से लेकर सवार्थसिद्धि पर्यंत देव ‘अहमिन्द्र’ होते हैं अत: इनके प्रतीन्द्र आदि परिवार देव नहीं होते हैं और न देवियाँ ही होती हैं। इन कल्पातीतों में उपपाद सभायें, जिनभवन, दिव्यरत्नमय प्रासाद, अभिषेक सभा, संगीत शाला आदि होते हैं एवं चैत्य वृक्ष भी होते हैं।
अधस्तन, मध्यम और उपरिम ग्रैवेयकों के इंद्र भवनों की ऊँचाई क्रम से २००, १५० और १०० योजन है एवं लम्बाई क्रम से ४०, ३०, २० योजन तथा चौड़ाई २०, १५, १० योजन प्रमाण है।