ऊँचाई लंबाई चौड़ाई
अध. ग्रै. २०० ४० २०
मध्य. ग्रै. १५० ३० १५
उप.ग्रै. १०० २० १०
नवअनुदिश में भवनों की ऊँचाई ५० योजन, लंबाई १० योजन एवं चौड़ाई ५ योजन मात्र है ऐसे ही अनुत्तरों में भवनों की ऊँचाई २५ योजन, लंबाई ५ योजन और चौड़ाई २-१/२ योजन मात्र है।
जिनलिंगधारी मुनिगण ही सोलहवें स्वर्ग के ऊपर नव ग्रैवेयक में जाते हैं। यहाँ ग्रैवेयकों में द्रव्यलिंगी मुनि अभव्य-मुनि भी जा सकते हैं। किन्तु नवअनुदिश और पाँच अनुत्तरों में सम्यदृष्टि महामुनि ही जाते हैं, मिथ्यादृष्टि नहीं जाते हैं। विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित इन चारों में जन्म लेने वाले जीव अधिक से अधिक दो भव में नियम से मोक्ष जाते हैं। सर्वार्थ सिद्धि के देव नियम से एक भवावतारी ही होते हैं।
कल्पवासी देव तीर्थंकरों के कल्याणक महोत्सव में आते हैं किन्तु आगे अहमिन्द्र देव वहीं स्थित रहकर भक्ति से मस्तक को झुकाकर प्रणाम करते हैं। कल्पवासी देवों की अपेक्षा इन अहमिन्द्रों को अनंत गुणा सुख अधिक है।