जो यहाँ कंदर्प-काम, राग आदि परिणामों से सहित पुण्य संचय करते हैं। वे मनुष्य ईशान स्वर्ग पर्यंत कंदर्प जाति के देवों में ही उत्पन्न होते हैं, आगे नहीं, जो यहाँ गीत, गान आदि को आजीविका-नृत्य आदि कार्य करते हैं वे किल्विष परिणाम से सहित जीव, शुभ कर्म संचय के साथ लांतव कल्प तक किल्विषक जाति के देवों में ही पैदा होते हैं आगे नहीं होते। जो यहाँ पाप क्रिया-पूज्यों के अपमान आदि में प्रवृत्त होते हैं वे आभियोग्य भावना से सहित जीव अच्युत कल्पपर्यंत आभियोग्य जाति के देवों में ही जन्म लेते हैं अन्यत्र नहीं। अपने-अपने स्वर्ग में जो जघन्य आयु होती है कंदर्प किल्विषक और आभियोग्य देव उस जघन्य आयु से सहित होते हैं।