जिस१ किसी ने मनुष्य जन्म प्राप्त करके यदि पल्य विधान नाम का व्रत किया है, वह भव्य है, यह बात निश्चित है। यह व्रत श्रवण मात्र से ही असंख्यात भवों के पापों का नाश कर देता है और तत्काल ही स्वर्गमोक्ष को भी देने वाला है। वृषभदेव भगवान ने पहले इस पल्य विधान का कथन किया है। उसी प्रकार वीर जिनेन्द्र के निकट में गौतम आदि महर्षियों ने भी इसे कहा है। इस विधान के पढ़ने से सहस्रगुणा फल होता है और इसका अनुष्ठान करने से उत्तम अनन्त केवलज्ञान प्राप्त होता है। इस व्रत के अनुषंगिक फल चक्रीपद और इन्द्रपद भी प्राप्त होते हैं किन्तु मुख्यरूप से इसका फल निर्मल तीर्थंकर पद प्राप्त करना ही है।’