वत्स देश के रौरकपुर के राजा उद्दायन बहुत ही धर्मनिष्ठ थे। उनकी रानी का नाम प्रभावती था। एक समय सौधर्म इन्द्र ने अपनी सभा में सम्यक्त्व गुण का वर्णन करते हुए निर्विचिकित्सा अंग में राजा उद्दायन की बहुत ही प्रशंसा की। इस बात को सुनकर एक वासव नामक देव यहां परीक्षा के लिए आ गया। उसने कुष्ठ रोग से गलित अत्यन्त दुर्गन्धि युक्त दिगम्बर मुनि का रूप बना लिया और आहारार्थ निकल पड़ा।
उसकी दुर्गन्धि से तमाम श्रावक भाग खड़े हुए, किन्तु राजा उद्दायन ने रानी सहित उसे बड़ी भक्ति से पड़गाहन कर विधिवत् आहार दान दिया। आहार के तत्काल बाद उस मायावी मुनि ने वमन कर दिया। उसकी दुर्गन्ध से सारे नौकर चाकर पलायमान हो गये, किन्तु राजा और रानी बड़ी विनय से मुनिराज की सुश्रूषा करते रहे तथा अपने दान की निंदा करने लगे। तब देव ने प्रगट होकर राजा की स्तुति-भक्ति करते हुए सौधर्म इन्द्र द्वारा की गई प्रशंसा का हाल सुनाया। अनंतर स्वस्थान को चला गया। कालांतर में राजा विरक्त होकर मुनि बन गये और कर्म नाश कर मोक्ष चले गये।