एक गाँव में एक कुम्हार और नाई ने मिलकर एक धर्मशाला बनवाई। कुम्हार ने एक दिन एक मुनिराज को लाकर धर्मशाला में ठहरा दिया। तब नाई ने दूसरे दिन मुनि को निकाल कर एक संन्यासी को लाकर ठहरा दिया। इस निमित्त से दोनों लड़कर मरे और कुम्हार का जीव सूकर हो गया तथा नाई का जीव व्याघ्र हो गया।
एक बार जंगल की गुफा में मुनिराज विराजमान थे। पूर्व संस्कार से वह व्याघ्र उन्हें खाने को आया और सूकर ने उन्हें बचाना चाहा। दोनों लड़ते हुए मर गये। सूकर के भाव मुनि रक्षा के थे। अतः वह मर कर देवगति को प्राप्त हो गया और व्याघ्र हिंसा के भाव से मरकर नरक में चला गया।