-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज—जयति जय जय मां सरस्वती जयति वीणा वादिनी……
जयति जय-जय गोम्मटेश्वर, जयति जय बाहूबली।
जयति जय भरताधिपति, विजयी अनूपम भुजबली।।टेक.।।
श्री आदिनाथ युगादिब्रह्मा, त्रिजगपति विख्यात हैं।
गुणमणि विभूषित आदिप्रभु के, भरत और बाहूबली।।जयति.।।१।।
वृषभेश जब तप वन चले, तब न्याय नीती कर गये।
साकेतनगरीपति भरत, पोदनपुरी बाहूबली।।जयति जय.।।२।।
षट्खण्ड जीता भरत ने, मन की नहीं आशा बुझी।
निज चक्ररत्न चला दिया, फिर भी विजयी बाहूबली।।जयति जय.।।३।।
तन से प्रभू निर्मम हुए, वन जन्तु क्रीड़ा कर रहे ।
सिद्धी रमा वरने चले, प्रभु वीर बन बाहूबली।।जयति जय.।।४।।
प्रभु बाहुबलि की नग्न मुद्रा, सीख यह सिखला रही।
सब त्याग करके ‘‘चंदनामति’’, तुम बनो बाहूबली ।।जयति जय.।।५।।