रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
मुझे पावापुर जाना है, मुझे जलमंदिर जाना है,
वहाँ लाडू चढ़ाकर, दीवाली का पर्व मनाना है।
जय जय दीवाली हो………जय जय दीवाली………।।टेक.।।
महावीर प्रभु कर्म नाशकर, मोक्षधाम जब पहुँचे।
पावापुर के जलमंदिर में, देव इन्द्र सब पहुँचे-देव इन्द्र सब पहुँचे।
उनकी ही यादों में, अब दीप जलाना है।
घर घर में धन लक्ष्मी का, भण्डार भराना है।।मुझे.।।१।।
वह पावापुरी सरोवर, अब तक भी लहर रहा है।
प्राचीन वहाँ जलमंदिर, का उपवन महक रहा है, हाँ उपवन महक रहा है।
आती है याद वहाँ, महावीर प्रभू जी की।
जिनको वन्दन करती, है भारत की धरती।।मुझे.।।२।।
महावीर वीरसंवत्सर, मंगलमय हो सब जग में।
निर्वाण की ही स्मृति में, जो शुरू हुआ भारत से……..जो शुरू…….
‘‘चन्दनामती’’ सबको, दीवाली मंगल हो।
जीवन में हरक्षण सबके, नव खुशियाँ शामिल हों।।मुझे.।।३।।