श्री ऋषभदेव, अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, पुष्पदंतनाथ, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतनाथ, नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी। इस भरत क्षेत्र में उत्पन्न हुये इन चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार हो, ये ज्ञानरूपी फरसे से भव्य जीवों के संसाररूपी वृक्ष को छेदने वाले हैं।२
आगे आने वाले उत्सर्पिणी के चतुर्थकाल में जो चौबीस तीर्थंकर होवेंगे, उनके नाम निम्न प्रकार हैं-
श्री महापद्म, सुरदेव, सुपार्श्व, स्वयंप्रभ, सर्वप्रभ, देवपुत्र, कुलपुत्र, उदंकनाथ, प्रोष्ठिलनाथ, जयकीर्ति, मुनिसुव्रत, अरनाथ, अपापनाथ, निष्कषायनाथ, विपुलनाथ, निर्मलनाथ, चित्रगुप्त, समाधिगुप्त, स्वयंभूनाथ, अनिवृत्तिनाथ, जयनाथ, विमलनाथ, देवपाल और अनंतवीर्य ये चौबीस तीर्थंकर होवेंगे।३ इनमें से राजा श्रेणिक जो कि भगवान महावीर के समय उन्हीं के समवसरण में मुख्य श्रोता हुए हैं ये आगे प्रथम तीर्थंकर ‘महापद्म’ होंगे।
वर्तमान में अवसर्पिणी का पाँचवां ‘दु:षमा’ नाम का काल चल रहा है। इस अवसर्पिणी का ‘हुंडावसर्पिणी’ भी नाम है। इसमें कुछ अघटित घटनाएँ हुई हैं।
इस वर्तमान अवसर्पिणी से पूर्व जो उत्सर्पिणी काल हो चुका है, उसमें भी चौबीस तीर्थंकर हो चुके हैं। उनके नाम क्रमश:-श्रीनिर्वाण, सागरनाथ, महासाधु, विमलनाथ, श्रीधरनाथ, सुदत्तनाथ, अमलप्रभनाथ, उद्धरनाथ, अंगिरनाथ, सन्मतिनाथ, सिंधुनाथ, कुसुमाञ्जलिनाथ, शिवगणनाथ, उत्साहनाथ, ज्ञानेश्वर, परमेश्वर, विमलेश्वर, यशोधर, कृष्णमतिनाथ, ज्ञानमतिनाथ, शुद्धमतिनाथ, श्रीभद्रनाथ, अतिक्रांतनाथ और शान्तनाथ ये भूतकालीन तीर्थंकर हो चुके हैं।