‘‘येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठ: श्रेष्ठगुण आसीद् येनेदं वर्षं भारत-मिति व्यपदिशन्ति।२’’
‘‘ऋषभाद् भरतो भरतेन चिरकालं धर्मेण पालितत्वादिदं भारतं वर्षमभूत्।।३’’
ऋग्वेद आदि वेदों में भी ऋषभदेव को तो माना ही है, कहीं-कहीं चौबीस तीर्थंकरों को भी स्वीकार किया है। यथा-
‘‘ॐ त्रैलोक्यप्रतिष्ठितान् चतुर्विंशतितीर्थकरान् ऋषभाद्यान् वर्द्धमानान्तान् सिद्धान् शरणं प्रपद्ये।४’’
ॐ तीन लोक में प्रतिष्ठित ऋषभदेव से लेकर वर्द्धमान पर्यंत चौबीस तीर्थंकरों की और सिद्धों की मैं शरण लेता हूँ ।
अन्यत्र भी-‘‘ॐ नमो अर्हतो ऋषभाय।’’५