तिलोयपण्णत्ति में लिखा है कि ‘‘ये अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल अनंत होते रहते हैं। असंख्यातों अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी के बीत जाने पर एक ‘हुण्डावसर्पिणी’ काल आता है।’’२ इससे स्पष्ट है कि प्रत्येक अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी में चौबीस-चौबीस तीर्थंकर होने से असंख्यातों चौबीसी हो चुकी हैं अत: ‘भगवान महावीर स्वामी जैनधर्म के संस्थापक हैं’ यह कथन कथमपि उचित नहीं है।