जैनधर्म में दो शाश्वत तीर्थभूमियाँ मानी गयी हैं। १. अयोध्या,
२. सम्मेदशिखर। अयोध्या नगरी को जैनधर्म में शाश्वत तीर्थंकर जन्मभूमि कहा गया है अर्थात् प्रत्येक काल में होने वाले तीर्थंकरों का जन्म अयोध्या में ही होता है अत: यह अयोध्या अनंतानंत तीर्थंकरों की जन्मभूमि कहलाती है। इसी के साथ समस्त तीर्थंकरों का निर्वाण अर्थात् मोक्षगमन सम्मेदशिखर तीर्थ (गिरीडीह-झारखंड) से होता है। अत: सम्मेदशिखर जी भी जैनियों की पावन स्थली अनंतानंत तीर्थंकरों की निर्वाणभूमि कही जाती है। यह शाश्वत और अकाट्य नियम है कि समस्त तीर्थंकरों का ‘जन्म’ अयोध्या में और ‘निर्वाण’ सम्मेदशिखर जी से ही होता है। अत: इन दोनों ही तीर्थभूमियों को ‘‘शाश्वत तीर्थभूमि’’ की संज्ञा प्राप्त है। शाश्वत का अर्थ अजर, अमर, अविनश्वर अर्थात् जिसका कभी विनाश न हो, ऐसी ये दो तीर्थभूमियाँ जैनधर्म में मान्यता प्राप्त हैं। इसके साथ ही जैनधर्म के सैकड़ों तीर्थ, अतिशय क्षेत्र, सिद्धक्षेत्र, कल्याणक क्षेत्र, तीर्थक्षेत्र आदि के रूप में सारे देश में वंदना और पूज्यता के योग्य हैं।
कालदोष का प्रभाव-उपरोक्त दो शाश्वत तीर्थभूमियों की बात हमने जानीं, लेकिन इस शाश्वत नियम में कतिपय कालदोष के कारण वर्तमान में कुछ परिवर्तन भी हुआ है। तीर्थभूमियाँ तो शाश्वत ही हैं, लेकिन अयोध्या में सभी २४ तीर्थंकरों के जन्म की अपेक्षा इस युग के केवल ५ तीर्थंकरों का जन्म इस काल में हुआ है। इसके साथ ही सम्मेदशिखर जी से भी समस्त २४ तीर्थंकरों के निर्वाण की अपेक्षा २० तीर्थंकरों का निर्वाण वहाँ से हुआ है। अर्थात् अयोध्या में तीर्थंकर ऋषभदेव, तीर्थंकर अजितनाथ, तीर्थंकर अभिनंदननाथ, तीर्थंकर सुमतिनाथ और तीर्थंकर अनंतनाथ का जन्म हुआ है। शेष १९ तीर्थंकरों का जन्म उत्तरप्रदेश व बिहार की कुण्डलपुर, हस्तिनापुर आदि विभिन्न तीर्थभूमियों पर हुआ है। इसी प्रकार २० तीर्थंकरों का निर्वाण सम्मेदशिखर जी से हुआ तथा अन्य ४ तीर्थंकरों में भगवान ऋषभदेव ने वैâलाशपर्वत से, भगवान वासुपूज्यनाथ ने चम्पापुरी (भागलपुर) से, भगवान नेमिनाथ ने गिरनार जी (गुजरात) से एवं भगवान महावीर स्वामी ने पावापुरी (नालंदा) से निर्वाण प्राप्त किया है। इस कालदोष को हुण्डावसर्पिणी कालदोष कहा जाता है। जैनधर्म में कालचक्र सिद्धान्त के अनुसार वर्तमान में यह पंचमकाल चल रहा है।