तर्ज—ऐ मालिक तेरे वंदे हम ………….
तीर्थ कम्पिल को मेरा नमन,
आरती थाल ले आए हम।
जन्मभूमी नमें, तीर्थ आरति करें, ताकि आरत का होवे शमन।।टेक.।।
कृतवर्मा पिता के महल,
माता जयश्यामा के आंगन,
इन्द्र आज्ञा को ले, धनद उस नगरी में, रत्नों की वर्षा खूब करें
होता मन में है रोमांच तब, करो जब उसका चिन्तन मनन।।जन्मभूमी.।।१।।
पहले शैशव युवावस्था फिर,
ब्याह कर राज्य कीना था जिन,
वैराग्य हुआ, घोर तप था किया, घातिया नाश ज्ञान लहें,
चार कल्याणकों से चमन, उस पावन धरा को नमन।।जन्मभूमी.।।२।।
इसी भू पर सती द्रौपदी,
जन्मी थीं जो महासति हुई,
महाभारत का युग, हुए राजा द्रुुपद, उनकी कन्या को भी हम जजें,
कम्पिलापुर के इतिहास को, गाते आज भी धरती गगन।।जन्मभूमी.।।३।।
नौका सम पार भव से करे,
मिश्री सम मीठा फल सबको दे,
‘इन्दु’ बस इक यही, आश प्रभु से मेरी, आत्मा तीर्थ मेरी बने,
इन्हीं भावों को ले करके हम, तीर्थ को करते शतश: नमन।।जन्मभूमी.।।४।।