तर्ज—मैं तो आरती उतारूँ रे…………..
मैं तो आरती उतारूँ रे, पद्मावती माता की
जय जय माँ पद्मावती, जय जय माँ।।टेक.।।
सदा होती है जयजयकार, माँ के मंदिर में-२
लागी भक्तन की भीड़ अपार, माँ के मंदिर में-२
पुष्प लाओ, धूप जलाओ, स्वर्णमयी दीप लाओ,
आरती उतारो रे, हो सब मिल आरति उतारो रे।।मैं…।।१।।
पार्श्व प्रभुवर की शासन देवी, सब संकट हरणी-२
देव धरणेन्द्र की यक्षिणी, तुम मंगल करणी-२
भक्त जब पुकारते, संकट को टारते,
महिमा को गाएं तेरी, हो सब मिल महिमा को गावें तेरी।।मैं…।।२।।
पार्श्व प्रभुवर के मुख से जब मंत्र नवकार सुना-२
बनें पद्मावती धरणेन्द्र, उपसर्ग दूर किया-२
स्थल वह अहिच्छत्र, तब से है जग प्रसिद्ध,
पावन परम पूज्य है, हो देखो वो पावन परम पूज्य है।।मैं…।।३।।
रोग, शोक, दरिद्र, नाशें, प्रेतादि की बाधा-२
धन-संपत्ति सुत देकर, पूरी करें वाञ्छा-२
सुन ले आज फिर पुकार, भक्त खड़े तेरे द्वार,
अतुल शक्ति की धारिणी, हो तुम हो अतुल शक्ति की धारिणी।।मैं…।।४।।
माँ सहस्रनाम से तेरी, करते जो आराधना-२
गोदी भरते जो माँ तेरी, पूरी हों सब कामना-२
ममतामयी मेरी मात, ‘इन्दु’ करे एक आश,
जीवन प्रकाशमान हो, हो मेरा भी जीवन प्रकाशमान हो।।मैं…।।५।।