(‘‘आध्यात्मिक ज्योति’’ पुस्तक से साभार)
भारत सरकार के द्वारा बाल-विवाह कानून-निर्माण के बहुुत समय पहले ही आचार्य महाराज की दृष्टि उस ओर गई थी। उनके ही प्रताप से कोल्हापुर राज्य में सर्वप्रथम बाल-विवाह प्रतिबंधक कानून बना दिया गया था। इसकी मनोरंजक कथा इस प्रकार है।कोल्हापुर के दीवान श्री लट्ठे दिगम्बर जैन भाई थे। लट्ठे की बुद्धिमत्ता की प्रतिष्ठा महाराष्ट्र प्रान्त में व्याप्त थी। वहाँ आचार्यश्री विराजमान थे। दीवान बहादुर श्री लट्ठे प्रतिदिन सायंकाल के समय महाराज के दर्शनार्थ आया करते थे। एक दिन लट्ठे महाशय ने आकर आचार्यश्री के चरणों में प्रणाम किया। महाराज ने आशीर्वाद देते हुए कहा-‘‘तुमने पूर्व में पुण्य किया है, जिससे तुम इस राज्य के दीवान बने हो और दूसरे राज्यों में तुम्हारी बात का मान है। मेरा तुमसे कोई काम नहीं है। एक बात है, जिसके द्वारा तुम लोगों का कल्याण करा सकते हो। एक -इस कारण, कोल्हापुर के राजा तुम्हारी बात को नहीं टालते।’’ दीवान बहादुर लट्ठे ने कहा-‘‘महाराज! मेरे योग्य सेवा सूचित करने की प्रार्थना है। महाराज-‘‘छोटे-छोटे बच्चों की शादी की अनीति चल रही है। अबोध बालकों-बालिकाओं का विवाह हो जाता है। लड़के के मरने पर बालिका विधवा कहलाने लगती है। उस बालिका का भाग्य फूट जाता है। इससे तुम बाल-विवाह प्रतिबंधक कानून बनाओ। इससे तुम्हारा जन्म सार्थक हो जायेगा। इस काम में तनिक भी देर नहीं हो।’’ कानून के श्रेष्ठ पंडित दीवान लट्ठे की आत्मा आचार्य महाराज की बात सुनकर अत्यन्त हर्षित हुई। मन ही मन उन्होंने महाराज की उज्ज्वल सूझ की प्रशंसा की। गुरुदेव को उन्होंने यह अभिवचन दिया कि आपकी इच्छानुसार शीघ्र ही कार्य करने का प्रयत्न करूँगा।
दीवान श्री लट्ठे की कार्य-कुशलता-गुरुदेव के चरणों को प्रणामकर लट्ठे साहब महाराजा कोल्हापुर के महल में पहुँचे। महाराजा साहब उस समय विश्राम कर रहे थे, फिर भी दीवान का आगमन सुनते ही बाहर आ गए। दीवान साहब ने कहा-‘‘गुरु महाराज ‘बाल-विवाह-प्रतिबंधक कानून’ बनाने को कह रहे हैं।’’राजा ने कहा-‘‘तुम कानून बनाओ। मैं उस पर सही कर दूँगा।’’ तुरन्त लट्ठे ने कानून का मसौदा तैयार किया। कोल्हापुर राज्य का सरकारी विशेष गजट निकाला गया, जिसमें कानून का मसौदा छपा था। प्रात:काल योग्य समय पर उस मसौदे पर राजा के हस्ताक्षर हो गए, वह कानून बन गया। दोपहर के पश्चात् सरकारी घुड़सवार सुसज्जित हो एक कागज लेकर वहाँ पहुँचा, जहाँ आचार्य शांतिसागर महाराज विराजमान थे।
लोग आश्चर्य में थे कि अशांति और उपद्रव के क्षेत्र में विचरण करने वाले ये शस्त्रसज्जित शाही सवार यहाँ शांति के सागर के पास क्यों आए हैं? महाराज के पास पहुँचकर उस शस्त्रालंकृत घुड़सवार ने उनको प्रणाम किया और उनके हाथ में एक राजमुद्रा अंकित बंद पत्र दिया गया। लोग आश्चर्य में निमग्न थे कि महाराज के पास सरकारी कागज आने का क्या कारण है? क्षणभर में कागज पढ़ने से ज्ञात हुआ कि उसमें महाराज को प्रणामपूर्वक यह सूचित किया गया था कि उनके पवित्र आदेश को ध्यान में रखकर कोल्हापुर सरकार ने बाल-विवाह प्रतिबंधक कानून बना दिया है। महाराज के मुखमंडल पर एक अपूर्व आनंद की आभा अंकित हो गई।भारत सरकार ने जब बाल-विवाह कानून पास किया था, तब समाज के स्थितिपालक दल के लोग उसको अयोग्य बताकर विरोध करते थे। सुधारक कहे जाने वाले भाई उसका स्वागत कर रहे थे। इस प्रसंग से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उक्त कानून के विचार के जन्मदाता आचार्य महाराज थे। यथार्थ में वे बड़े प्रगतिशील तथा उज्जवल मौलिक विचारक थे। उन सरीखा सुधारक कौन हो सकता है? जिन्होंने असंयम तथा मिथ्यात्व के विषपान में निमग्न जगत् को रत्नत्रय की अमृत औषधि पिलाई।
-स्व. पं. सुमेरचंद दिवाकर
(सिवनी-म.प्र.)