-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज—सबसे बड़ी मूर्ति का…….
पुष्पदंतनाथ का, नवम तीर्थनाथ का, मस्तकाभिषेक हो रहा है,
प्रभु का जयजयकार हो रहा है।।टेक.।।
तीर्थ बनी काकन्दी नगरी।
पुष्पदन्त प्रभु की जन्म नगरी।।
उनकी हैं विराजमान प्रतिमा।
आज तीर्थ की यही है महिमा।।
उन्हीं तीर्थनाथ का, पुष्पदंतनाथ का, मस्तकाभिषेक हो रहा है,
प्रभु का जय जयकार हो रहा है।।१।।
गणिनीप्रमुख ज्ञानमती जी हैं।
जैन संस्कृति की ये निधी हैं।।
उनकी प्रेरणा से बनी प्रतिमा।
तीर्थ की बढ़ी है इससे गरिमा।।
उन्हीं तीर्थनाथ का, पुष्पदंतनाथ का, मस्तकाभिषेक हो रहा है,
प्रभु का जय जयकार हो रहा है।।२।।
जन्मकल्याणक है उन्हीं प्राु का।
महोत्सव मना लो उन्हीं प्रभु का।।
‘‘चन्दनामती’’ जनम सफल हो।
मिले शीघ्र मुझको मुक्ति फल हो।।
उन्हीं तीर्थनाथ का, पुष्पदंतनाथ का, मस्तकाभिषेक हो रहा है,
प्रभु का जय जयकार हो रहा है।।३।।