जलाभिषेक-
व्योमापगादितीर्थोद्भवेनातिस्वच्छवारिणा।
जिनेन्द्रमुखजां वाणीं सिञ्चे विश्वैकमातृकाम् ।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं पवित्रतरजलेन सरस्वती देवीं अभिषेचयामि स्वाहा।। उदक…..
इक्षुरसाभिषेक-
सद्य: पीलितपुण्ड्रेक्षुरसेन शर्करादिना।
जिनेन्द्रमुखजां वाणीं सिञ्चे विश्वैकमातृकाम्।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं इक्षुरसेन सरस्वती देवीं अभिषेचयामि स्वाहा। उदक…..
घृताभिषेक-
कनत्काञ्चनवर्णेन सद्य:संतप्तसर्पिषा।
जिनेन्द्रमुखजां वाणीं सिञ्चे विश्वैकमातृकाम्।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं सरस्वती देवीं अभिषेचयामि स्वाहा।। उदक……
दुग्धाभिषेक-
सद्गोक्षीरप्रवाहेन शुक्लध्यानाकरेण वा।
जिनेन्द्रमुखजां वाणीं सिञ्चे विश्वैकमातृकाम्।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐें अर्हं दुग्धेन सरस्वती देवीं अभिषेचयामि स्वाहा। उदक…….
दध्नाभिषेक-
हिमपिण्डसमानेन दध्ना पुण्यफलेन वा।
जिनेन्द्रमुखजां वाणीं सिञ्चे विश्वैकमातृकाम्।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐें अर्हं दध्नेतन सरस्वती देवीं अभिषेचयामि स्वाहा। उदक…….
चतुष्कोण कलश जलाभिषेक-
हेमोत्पन्नचतु: कुम्भैर्नानातीर्थाम्बुवारिभिः।
जिनेन्द्रमुखजां वाणीं सिञ्चे विश्वैकमातृकाम्।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐें अर्हं चतुष्कोणकलशेन सरस्वती देवीं अभिषेचयामि स्वाहा। उदक…..
सुगन्धित जलाभिषेक-
दिव्यद्रव्यौघमिश्रेण सुगन्धेनाच्छवारिणा।
जिनेन्द्रमुखजां वाणीं सिञ्चे विश्वैकमातृकाम्।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं वं मं हं सं तं पं वं वं मं मं हं हं सं सं तं तं पं पं द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय झं झं झ्वीं क्ष्वीं हं स: सुगन्धित जलेन सरस्वतीदेवीं अभिषेचयामि स्वाहा। उदक……
-पूर्णार्घ्य-
इतिश्रीभारती जैनीं येऽभिषिच्य यजन्ति ते।
विज्ञाय द्वादशाङ्गानि वै स्यु: केवलिनोऽचिरात्।।
उदक…..जिनगृहे जिनवाच महंयजे।
ॐ ह्रीं सरस्वती देव्यै पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।