ॐ ह्रीं श्री सरस्वतीदेवि! सद्वस्त्रं गृहाण गृहाण स्वाहा।
(वस्त्र पहनाना)
ॐ ह्रीं श्री सरस्वतीदेवि! आभरणं गृहाण गृहाण स्वाहा।
(अलंकार पहनावे)
ॐ ह्रीं श्री सरस्वतीदेवि! तिलकं करोमि स्वाहा।
(माथे में बिन्दी, तिलक लगावे)
-शेर छन्द-
कमलासिनी श्रुतधारिणी माता सरस्वती।
जिनशासनी अनुगामिनी माता सरस्वती।।
है द्वादशांग रूप से निर्मित तेरी काया।
सम्यक्त्व तिलक माथे पे चारित्र की छाया।।
विद्वानों से भी पूज्य तुम माता सरस्वती।
जिनशासनी अनुगामिनी माता सरस्वती।।१।।
जिनवर की मूर्ति तेरे मस्तक पे राजती।
वन्दन करें जो उनकी ज्ञान शक्ति जागती।।
हे श्वेतवस्त्र धारिणी माता सरस्वती।
जिनशासनी अनुगामिनी माता सरस्वती।।२।।
हे शारदा तू ज्ञान की गंगा बहाती है।
वागीश्वरी तू ब्रह्मचारिणी कहाती है।।
कर में है वीणा पुस्तक माला सरस्वती।
जिनशासनी अनुगामिनी माता सरस्वती।।३।।
जो भी तेरी आराधना में लीन होता है।
मिथ्यात्वतिमिर हटा ज्ञान लीन होता है।।
है ‘‘चन्दनामती’’ विनत माता सरस्वती।
जिनशासनी अनुगामिनी माता सरस्वती।।४।।