ॐ ह्रीं श्री महालक्ष्मीदेवि! सद्वस्त्रं गृहाण गृहाण स्वाहा।
(वस्त्र पहनाना)
ॐ ह्रीं श्री महालक्ष्मीदेवि! आभरणं गृहाण गृहाण स्वाहा।
(अलंकार पहनावे)
ॐ ह्रीं श्री महालक्ष्मीदेवि! तिलकं करोमि स्वाहा।
(माथे में बिन्दी, तिलक लगावे)
लक्ष्मी महादेवी का शृंगार करो जी।
अपने घर में लक्ष्मी का भंडार भरो जी।। टेक.।।
जिनवर के ये सदा संग रहती हैं।
समवसरण में आगे-आगे चलती हैं।।
उसी वैभव को नमस्कार करो जी।
अपने घर में लक्ष्मी का भंडार भरो जी।।१।।
तीर्थंकर की माता को स्वप्न में दिखी थीं।
गज अभिषेक प्राप्त लक्ष्मी जी दिखी थीं।।
लक्ष्मी माता पर जल की धार करो जी।
अपने घर में लक्ष्मी का भंडार भरो जी।।२।।
साड़ी पहनाओ और चुनरी ओढ़ाओ।
माथे पे कुंकुम की बिन्दिया लगाओ।।
नाना अलंकारों से शृृंगार करो जी।
अपने घर में लक्ष्मी का भंडार भरो जी।।३।।
लक्ष्मी को देने वाली यही महामाता हैं।
इनकी आराधना से सब मिल जाता है।।
पूजा में तन-मन-धन उदार करो जी।
अपने घर में लक्ष्मी का भंडार भरो जी।।४।।
‘‘चन्दनामती’’ जिसने इनका ध्यान धर लिया।
उसी ने वरदहस्त इनका प्राप्त कर लिया।।
जिनवर सहित देवी को प्रणाम करो जी।
अपने घर में लक्ष्मी का भण्डार भरो जी।।५।।
अरिहंत देव इनके मस्तक पे विराजे हैं।
जिनको नमन करने से दरिद्रता भागे है।
दीवाली को इनका सब सत्कार करो जी।
अपने घर में लक्ष्मी का भण्डार भरो जी।। ६।।