प्रस्तुतकर्ता-पं. नरेश कुमार जैन ‘प्रतिष्ठाचार्य’,
जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर
प्रश्न १ -बीसवीं शताब्दी के प्रथम आचार्य, जिन्होंने लुप्त मुनिपरम्परा को जीवनदान दिया, उनका नाम बताओ?
उत्तर -चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज।
प्रश्न २ -चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी के दीक्षा गुरु कौन थे?
उत्तर -मुनि श्री १०८ देवेन्द्रकीर्ति जी महाराज।
प्रश्न ३ -चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी के प्रथम पट्टाचार्य श्री का नाम बताओ?
उत्तर -परमपूज्य आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज।
प्रश्न ४ -आचार्यश्री वीरसागर जी का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर -आचार्यश्री का जन्म महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद जिले के ‘वीर’ नामक ग्राम में हुआ था।
प्रश्न ५ -आचार्यश्री वीरसागर जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर -वि.सं. १९३३, ईसवी सन् १८७६ में, आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा के दिन।
प्रश्न ६ -आचार्यश्री वीरसागर जी के माता-पिता का नाम बताओ?
उत्तर -माता श्री भाग्यवती जी एवं पिता श्रेष्ठी श्री रामसुख जी थे।
प्रश्न ७ -आचार्यश्री के बचपन का क्या नाम था?
उत्तर -श्री हीरालाल जैन।
प्रश्न ८ -श्री हीरालाल जी के जन्म से पूर्व माता ने क्या स्वप्न देखा था?
उत्तर -माता भाग्यवती ने जन्म से पूर्व उत्तम श्वेत उत्तुंग एक वृषभ (सफेद बैल) स्वप्न में देखा था।
प्रश्न ९ -आचार्यश्री का लौकिक अध्ययन कहाँ तक हुआ?
उत्तर -कक्षा ७ तक हिन्दी व उर्दू दोनों भाषाओं में लौकिक अध्ययन हुआ।
प्रश्न १०-शिक्षा के बाद आचार्यश्री का क्या कार्य रहा?
उत्तर -आचार्यश्री अपने पिता के साथ व्यापार में उदासीन भाव से हाथ बटाने लग गये।
प्रश्न ११ -आचार्यश्री किस जाति व गोत्र के रत्न थे?
उत्तर -खण्डेलवाल जाति में गंगवाल गोत्रीय रत्न थे।
प्रश्न १२ -आचार्यश्री ने अष्टमूलगुण कब धारण किए?
उत्तर -श्री हीरालाल जी ने आठ वर्ष की आयु में अष्टमूलगुण सहित यज्ञोपवीत धारण किया था।
प्रश्न १३ -श्री हीरालाल जी का विवाह हुआ था या नहीं?
उत्तर -ये बाल ब्रह्मचारी थे। इन्होंने विवाह नहीं किया था।
प्रश्न १४ -आचार्यश्री ने ब्रह्मचर्य व्रत किससे व कब लिया?
उत्तर -बचपन में ही इन्होंने वैराग्य भाव से स्वयं ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार कर लिया था।
प्रश्न १५ -श्री हीरालाल जी के ब्रह्मचर्य व्रत का पता कब चला?
उत्तर -जब इनके माता-पिता ने विवाह का प्रसंग हीरालाल जी के सामने रखा तब इन्होंने अपने व्रत का खुलासा किया।
प्रश्न १६ -श्री हीरालाल जी की त्याग भावना कब जागृत हुई?
उत्तर -इनकी त्याग भावना तो बचपन से ही थी। वे घर में भी रस परित्यागपूर्वक भोजन करते थे तथा समय-समय पर व्रत-उपवास भी किया करते थे।
प्रश्न १७ -माता-पिता के वियोग के बाद हीरालाल जी ने क्या किया?
उत्तर -कचनेर अतिशय क्षेत्र पर धार्मिक पाठशाला खोलकर बच्चों को नि:शुल्क अध्ययन कराना प्रारंभ कर दिया।
प्रश्न १८ -कचनेर में आप किस नाम से प्रसिद्ध हुए?
उत्तर -‘गुरु जी’ के नाम से।
प्रश्न १९ -आपने सप्तम प्रतिमा के व्रत किससे, कब और कहाँ लिए?
उत्तर -वि.सं. १९७८, सन् १९२१ में ऐलक श्री पन्नालाल जी से नांदगांव में चातुर्मास में सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किए।
प्रश्न २० -हीरालाल जी सप्तम प्रतिमा लेने के बाद किसके साथ रहे?
उत्तर -ब्रह्मचारी श्री खुशालचंद जी के साथ रहने लगे।
प्रश्न २१ -ब्र. हीरालाल व ब्र. खुशालचंद को चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के प्रथम दर्शन कहाँ हुए?
उत्तर -दक्षिण भारत के कोन्नूर ग्राम में।
प्रश्न २२ -ब्र. हीरालाल जी ने क्षुल्लक दीक्षा कब और किससे ली?
उत्तर -वि.सं. १९८० सन् १९२३, फाल्गुन शुक्ला सप्तमी को चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागर जी से क्षुल्लक दीक्षा प्राप्त की।
प्रश्न २३ -क्षुल्लक दीक्षा के बाद ब्र. हीरालाल जी व ब्र. खुशालचंद जी किस नाम से प्रसिद्ध हुए?
उत्तर -ब्र. श्री हीरालाल जी क्षुल्लक श्री वीरसागर व ब्र. श्री खुशालचंद जी क्षुल्लक चन्द्रसागर जी के नाम से प्रसिद्ध हुए।
प्रश्न २४ -क्षुल्लक श्री वीरसागर जी का प्रथम चातुर्मास कहाँ हुआ?
उत्तर -चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के साथ दक्षिण भारत के ग्राम ‘समडोली’ में प्रथम चातुर्मास हुआ।
प्रश्न २५ -क्षुल्लक वीरसागर जी की मुनि दीक्षा कब और कहाँ हुई?
उत्तर -वि.सं. १९८१, सन् १९२४ में समडोली ग्राम में मुनिदीक्षा हुई।
प्रश्न २६ -चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज के प्रथम मुनि शिष्य कौन थे?
उत्तर -बा. ब्र. मुनि श्री १०८ वीरसागर जी महाराज।
प्रश्न २७-मुनि श्री वीरसागर जी ने अपने गुरु के साथ कितने चातुर्मास किए?
उत्तर -गुरु के साथ १२ चातुर्मास किए।
प्रश्न २८ -गुरु के साथ कहाँ-कहाँ चातुर्मास किए?
उत्तर -१. श्रवणबेलगोला २. कुम्भोज ३. समडोली ४. बड़ी नांदनी ५. कटनी ६. मथुरा ७. ललितपुर ८. जयपुर ९. ब्यावर १०. प्रतापगढ़ ११. जयपुर १२. दिल्ली।
प्रश्न २९ -चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के प्रमुख शिष्यों के नाम बताओ?
उत्तर -मुनि श्री वीरसागर जी, मुनि श्री चन्द्रसागर जी, मुनि श्री नेमिसागर जी, मुनि श्री कुंथुसागर जी, मुनि श्री सुधर्मसागर जी, मुनि श्री पायसागर जी, मुनि श्री नमिसागर जी, मुनि श्री श्रुतसागर जी, मुनि श्री आदिसागर जी, मुनि श्री अजितसागर जी, मुनि श्री विमलसागर जी, मुनि श्री पार्श्वकीर्ति जी।
प्रश्न ३० -आचार्य वीरसागर का गुरु से पृथव्â प्रथम चातुर्मास कहाँ हुआ?
उत्तर -वि.सं. १९९२ सन् १९३५ में गुजरात प्रान्त के ईडर नगर में प्रथम चातुर्मास हुआ।
प्रश्न ३१ -आचार्यश्री वीरसागर जी ने अपने गृहस्थावस्था के बड़े भाई गुलाबचंद को सप्तम प्रतिमा के व्रत कहाँ और कब दिये?
उत्तर -वि.सं. १९६५ में इंदौर चातुर्मास में गुलाबचंद को सप्तम प्रतिमा के व्रत आचार्यश्री ने दिये।
प्रश्न ३२ -आचार्यश्री वीरसागर जी के पट्टाचार्य कौन हुए?
उत्तर -आचार्यश्री शिवसागर जी महाराज।
प्रश्न ३३ -आचार्यश्री शिवसागर जी का गृहस्थावस्था का नाम क्या था?
उत्तर -रांवका गोत्रीय श्रावकरत्न हीरालाल जी था।
प्रश्न ३४ -श्री हीरालाल जी ने क्षुल्लक दीक्षा किससे और कहाँ ली?
उत्तर -आचार्यश्री वीरसागर जी से सिद्धवरकूट सिद्धक्षेत्र-म.प्र. में वि.सं. २००० में ली थी।
प्रश्न ३५ -आचार्यश्री वीरसागर जी के प्रथम मुनिशिष्य कौन हुए?
उत्तर -आचार्य श्री शिवसागर जी महाराज।
प्रश्न ३६ -चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज की समाधि कहाँ हुई?
उत्तर -कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र पर सन् १९५५ में।
प्रश्न ३७ -समाधि से पूर्व चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री ने अपना पद किसको प्रदान किया?
उत्तर -अपने सुयोग्य शिष्य श्री वीरसागर जी महाराज को पत्र लिखकर आचार्यपद प्रदान किया।
प्रश्न ३८ -श्री वीरसागर जी महाराज को आचार्यपद कब और कहाँ प्रदान किया गया?
उत्तर -भाद्रपद कृष्णा सप्तमी, गुरुवार को जयपुर-खानियां जी में चतुर्विध संघ व हजारों की संख्या में प्रदान किया गया।
प्रश्न ३९ -आचार्यश्री के जीवन की विशेष घटना बताओ?
उत्तर -आचार्यश्री की पीठ पर एक बड़ा फोड़ा हो जाने पर बिना बेहोशी के डॉ. द्वारा आप्रेशन करना।
प्रश्न ४० -आचार्यश्री के जीवन की मुख्य दो सूक्ति जो सदैव कहते थे?
उत्तर -१. जीवन में सदैव सुई का कार्य करों, वैंâची का नहीं। २. तृण मत बनो, पत्थर बनो।
प्रश्न ४१ -आचार्यश्री को कौन सा रोग था?
उत्तर -आचार्यश्री को मृगी का रोग था, जब मृगी का दौरा पड़ता था, तो आचार्यश्री सूत्र-श्लोक आदि को उच्च स्वर में बोलने लगते थे।
प्रश्न ४२ -चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागर जी एवं मुनि श्री वीरसागर जी का पुन: मिलन कब और कहाँ हुआ?
उत्तर -वि.सं. १९९६ में मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र पर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के अवसर पर पुन: गुरु-शिष्य का अपूर्व संगम (मिलन) हुआ।
प्रश्न ४३ -आचार्यश्री वीरसागर जी महाराज की प्रमुख बालब्रह्मचारिणी शिष्या का नाम बताओ?
उत्तर -परमपूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी।
प्रश्न ४४ -गणिनीप्रमुख आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर -२२ अक्टूबर १९३४, शरदपूर्णिमा के दिन टिवैâतनगर (बाराबंकी) उ.प्र. में पूज्य माताजी का जन्म हुआ।
प्रश्न ४५ -पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के माता-पिता का नाम बताओ?
उत्तर -पूज्य माताजी के पिता श्री छोटेलाल जी एवं माता श्रीमती मोहिनी देवी जो आगे चलकर आर्यिका श्री रत्नमती माताजी बनीं।
प्रश्न ४६ -पूज्य ज्ञानमती माताजी ने गृहत्याग कब किया?
उत्तर -सन् १९५२ में १८ वर्ष की अल्प आयु में शरदपूर्णिमा के दिन आचार्यश्री देशभूषण महाराज से सप्तम प्रतिमा के व्रत लेकर गृह- परित्याग किया था।
प्रश्न ४७ -पूज्य माताजी की क्षुल्लिका दीक्षा कब, कहाँ और किनके द्वारा हुई?
उत्तर -सन् १९५३ में चैत्र कृष्णा एकम् को श्री महावीर जी अतिशय क्षेत्र में आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज के करकमलों द्वारा हुई।
प्रश्न ४८ -परमपूज्य ज्ञानमती माताजी ने चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज के दर्शन कब और कहाँ किये?
उत्तर -सन् १९५४ में नीरा (महाराष्ट्र) में, सन् १९५५ में बारामती में पुन: कुंथुलगिरि में जब आचार्यश्री ने सल्लेखना धारण कर ली थी, उस समय पूज्य आचार्यश्री से पूज्य माताजी ने दीक्षा की प्रार्थना की, तब आचार्यश्री ने श्री वीरसागर जी के पास जाकर दीक्षा धारण करने की आज्ञा प्रदान की।
प्रश्न ४९ -आचार्य श्री वीरसागर जी ने क्षुल्लिका वीरमती को कब और कहाँ दीक्षा दी?
उत्तर -सन् १९५६ में वैशाख कृष्णा दूज को माधोराजपुरा (जयपुर) राज. में आर्यिका दीक्षा प्रदान की और ज्ञानमती यह नाम प्रदान किया।
प्रश्न ५० -आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी को दीक्षा के साथ आचार्यश्री ने क्या शिक्षा प्रदान की?
उत्तर -उन्होंने शिक्षा दी कि ज्ञानमती जी! आप अपने नाम का ध्यान रखना।
प्रश्न ५१ -पूज्य ज्ञानमती माताजी ने अपने गुरु की शिक्षा को जीवन में वैâसे अवतरित किया?
उत्तर -पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने जैन वांङ्मय को अपनी आगमोक्त लेखनी से चारों अनुयोगरूप ग्रंथों का सृजन व अनुवाद करके व भक्तिरस में जैन समाज को ओतप्रोत करने के लिए सरल पद्य में सैकड़ों की संख्या में विधान आदि रचकर तथा जैन भारती, ज्ञानामृत, कातंत्र व्याकरण, त्रिलोकभास्कर, प्रवचन निर्देशिका आदि स्वाध्याय ग्रंथों तथा बच्चों के लिए जहाँ बाल विकास का सृजन किया, वहीं युवाओं के लिए भक्ति, प्रतिज्ञा, आदिब्रह्मा, आटे का मुर्गा, जीवनदान आदि पौराणिक कथाओं को उपन्यास शैली में लिखा। आचार्य पुष्पदंत एवं आचार्य भूतबली द्वारा रचित षट्खण्डागम सूत्रों पर संस्कृत टीका करके तो इस बीसवीं सदी में नया इतिहास ही बना दिया। लगभग २५० ग्रंथों का सृजन करके अपने गुरु की शिक्षा को जीवन में साकार किया।
प्रश्न ५२ -पूज्य ज्ञानमती माताजी द्वारा विकसित प्रमुख तीर्थों के नाम बताओ?
उत्तर -१. हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप की रचना २. अयोध्या तीर्थ ३. भगवान ऋषभदेव की दीक्षा व केवलज्ञान भूमि प्रयाग में तपस्थली तीर्थ ४. कुण्डलपुर (नालंदा) बिहार में भगवान महावीर जन्मभूमि में नंद्यावर्त महल ५. मांगीतुंगी में १०८ फुट उत्तुंग भगवान ऋषभदेव की विशाल प्रतिमा निर्माण की प्रेरणा।
प्रश्न ५३ -वर्तमान में पूज्य माताजी की प्रेरणा से किस तीर्थ का विकास हो रहा है?
उत्तर -भगवान पुष्पदंतनाथ की जन्मभूमि काकंदी तीर्थ का।
प्रश्न ५४ -आचार्य श्री वीरसागर महाराज के प्रमुख शिष्यों के नाम बताओ?
उत्तर -मुनि श्री शिवसागर जी, मुनि श्री धर्मसागर जी, मुनि श्री पद्मसागर जी, मुनि श्री जयसागर जी, मुनि श्री सन्मतिसागर जी, मुनि श्री श्रुतसागर जी आदि।
प्रश्न ५५ -पूज्य आचार्यश्री द्वारा दीक्षित प्रमुख आर्यिकाओं के नाम बताओ?
उत्तर -आर्यिका श्री वीरमती माताजी, परम विदुषी गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी, गणिनी आर्यिका श्री सुपार्श्वमती माताजी आदि आर्यिकाओं में विशेष प्रसिद्धि को प्राप्त हुई हैं।
प्रश्न ५६ -आचार्यश्री वीरसागर जी द्वारा कहे जाने वाले बड़े रोगों के नाम बताओ?
उत्तर -आचार्यश्री अपने शिष्यों को हमेशा कहा करते थे कि मेरे को दो रोग हैं-१. भूख लगती है २. नींद आती है।
प्रश्न ५७ -आचार्यश्री कितने मूलगुणों का पालन करते थे?
उत्तर -आचार्यरत्न के आठ गुण, बारह तप, स्थितिकल्प के दश और छह आवश्यक ऐसे ३६ मूलगुण पालन करते थे।
प्रश्न ५८ -आचारत्वादि के आठ गुणों के नाम बताओ?
उत्तर -१. आचारी २. आधारी ३. व्यवहारी ४. प्रकारक ५. आयापायादिक ६. उत्पीड़न ७. अपरिस्रावी ८. सुखावह।
प्रश्न ५९ -बारह तपों के नाम बताओ?
उत्तर -१. अनशन २. अवमौदर्य ३. वृत्तिपरिसंख्यान ४. रसपरित्याग ५. विविक्तशय्यासन ६. कायक्लेश ये छह बाह्य तप एवं ७. प्रायश्चित्त ८. विनय ९. वैयावृत्य १०. स्वाध्याय ११. व्युत्सर्ग १२. ध्यान ये छह अंतरंग तप हैं।
प्रश्न ६० -स्थितिकल्प के दस भेदों के नाम बताओ?
उत्तर -१. आचेलक्य २. औद्देशिक ३. शय्याधर ४. पिंडत्याग ५. राजकीय िंपडत्याग ६. कृतिकर्म ७. व्रतारोपण योग्यता ८. ज्येष्ठता ९. प्रतिक्रमण मासैकवासिता १०. वार्षिक योग ये दश स्थितिकल्प गुण हैं।
प्रश्न ६१ -छह आवश्यक के नाम बताओ?
उत्तर -१. समता २. स्तुति ३. वंदना ४. प्रतिक्रमण ५. प्रत्याख्यान ६. कायोत्सर्ग
प्रश्न ६२ -आचार्य परमेष्ठी के दूसरे प्रकार से ३६ मूलगुण कौन-कौन माने गये हैं?
उत्तर -बारह तप, दश धर्म, पांच आचार, छह आवश्यक क्रिया और तीन गुप्ति ये ३६ मूलगुण भी माने गये हैं।
प्रश्न ६३ -आचार्यश्री वीरसागर जी के विशेष प्रसिद्ध गुण बताओ?
उत्तर -गंभीर, प्रतापशाली, मितभाषी और अल्प कुतूहली ये प्रमुख प्रसिद्ध गुण रहे।
प्रश्न ६४ -आचार्यश्री वीरसागर द्वारा दीक्षित कुल कितने साधु हुए हैं?
उत्तर -कुल २९ दीक्षित साधु थे।
प्रश्न ६५ -आचार्यश्री द्वारा दीक्षित मुनियों के नाम बताओ?
उत्तर -१०८ मुनि श्री शिवसागर जी, १०८ मुनि श्री सुमतिसागर जी, १०८ मुनि श्री धर्मसागर जी, १०८ मुनि श्री जयसागर जी।
प्रश्न ६६ -आचार्यश्री द्वारा दीक्षित आर्यिकाओं के नाम?
उत्तर -१०५ आर्यिका श्री वीरमती माताजी, १०५ आर्यिका श्री कुंथमती माताजी (नांदगांव), १०५ आर्यिका श्री कुंथुमती माताजी, १०५ आर्यिका श्री सिद्धमती माताजी, १०५ आर्यिका श्री अजितमती माताजी, १०५ आर्यिका श्री शांतिमती माताजी, १०५ आर्यिका श्री सुमतिमती माताजी, १०५ आर्यिका श्री पार्श्वमती माताजी, १०५ आर्यिका श्री विमलमती माताजी, १०५ आर्यिका श्री इन्दुमती माताजी, १०५ आर्यिका श्री वासमती माताजी, १०५ गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी, १०५ गणिनी आर्यिका श्री सुपार्श्वमती माताजी।
प्रश्न ६७ -आचार्यश्री द्वारा दीक्षित ऐलक जी का नाम?
उत्तर -१०५ ऐलक श्री अजितसागर जी महाराज।
प्रश्न ६८ -आचार्य श्री द्वारा दीक्षित क्षुल्लकों के नाम?
उत्तर -१०५ क्षुल्लक श्री सुमतिकीर्ति जी महाराज, १०५ क्षुल्लक श्री चिदानंदसागर जी महाराज, १०५ क्षुल्लक श्री सुमतिसागर जी महाराज, १०५ क्षुल्लक श्री जयसागर जी महाराज, १०५ क्षुल्लक श्री सिद्धसागर जी महाराज, १०५ क्षुल्लक श्री सन्मतिसागर जी महाराज।
प्रश्न ६९ -आचार्यश्री द्वारा दीक्षित क्षुल्लिकाओं के नाम?
उत्तर -१०५ क्षुल्लिका श्री अनन्तमती माताजी, १०५ क्षुल्लिका श्री चन्द्रमती माताजी, १०५ क्षुल्लिका श्री शांतिमती माताजी, १०५ क्षुल्लिका श्री गुणमती माताजी, १०५ क्षुल्लिका श्री जिनमती माताजी, १०५ क्षुल्लिका श्री चन्द्रमती माताजी-जयपुर।
प्रश्न ७०-आचार्यश्री से सप्तम प्रतिमा के व्रत लेने वास्ते कितने श्रावक थे?
उत्तर -ब्र. श्री गुलाबचंद आदि २१ श्रावक रहे।
प्रश्न ७१ -आचार्यश्री से सप्तम प्रतिमा लेने वाली श्राविकाएं कितनी रहीं?
उत्तर -ब्र.श्री केशरबाई, कमलाबाई, श्री महावीर जी आदि ५० श्राविकाएं रहीं।
प्रश्न ७२ -आचार्यश्री से ६ प्रतिमाओं के व्रत लेने वाले कितने श्रावक-श्राविकाएं रहीं?
उत्तर -श्रीमती सोहनबाई-म्हसवड़ आदि ९ श्रावक-श्राविकाएं रहीं।
प्रश्न ७३ -आचार्यश्री द्वारा प्रदत्त ५ प्रतिमाधारी कितने श्रावक-श्राविकाएं रहीं?
उत्तर -श्रीमती चमेली बाई-कारंजा आदि श्राविकाएं व हीरालाल जी पहाड़े-कन्नड़ आदि श्रावक कुल ८ रहे।
प्रश्न ७४ -आचार्यश्री द्वारा प्रदत्त ४ प्रतिमाधारी के नाम?
उत्तर -श्रीमान सेठ माधोलाल जी अजमेर रहे।
प्रश्न ७५ -आचार्यश्री द्वारा प्रदत्त ३ प्रतिमाधारी के नाम?
उत्तर -स्व. श्री जेठमल जी गंगवाल-सुजानगढ़ व श्री हीरालाल जी पाटनी-निवाई रहे।
प्रश्न ७६ -आचार्यश्री द्वारा प्रदत्त २ प्रतिमाधारियों की संख्या बताओ?
उत्तर -श्री जमनालाल जी-जयपुर आदि ९७ श्रावक-श्राविकाओं ने २ प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये थे।
प्रश्न ७७ -आचार्यश्री वीरसागर जी महाराज द्वारा दीक्षित कुल कितने साधु आर्यिकाएं-श्रावक-श्राविकाएं-प्रतिमाधारी-त्यागीगण रहे?
उत्तर -आचार्यश्री द्वारा मोक्षमार्ग में लगने वाले लगभग २३७ त्यागीगण रहे।
प्रश्न ७८ -मुनि श्री शिवसागर जी महाराज का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर -महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद जिला के अडगांव में।
प्रश्न ७९ -आपके माता-पिता का नाम बताओ?
उत्तर -माता श्रीमती दगड़ाबाई और पिता श्री नेमीचंद रांवका।
प्रश्न ८० -मुनि श्री शिवसागर कितने भाई-बहन थे?
उत्तर -आप दो भाई, दो बहन थे।
प्रश्न ८१ -आपके शिक्षा गुरु कौन थे?
उत्तर -ब्र. श्री हीरालाल जी (आचार्य श्री वीरसागर जी)
प्रश्न ८२ -आपकी लौकिक शिक्षा कहाँ तक हुई?
उत्तर -कक्षा ३ तक।
प्रश्न ८३ -आपके वैराग्य का क्या कारण रहा?
उत्तर -बचपन में ही माता-पिता का स्वर्गवास प्रमुख कारण रहा।
प्रश्न ८४ -आपने प्रथम व्रत किससे लिए?
उत्तर -चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज से दो प्रतिमा के व्रत लिए।
प्रश्न ८५ -मुनि श्री शिवसागर जी ने सप्तम प्रतिमा के व्रत कब, कहाँ और किससे लिए?
उत्तर -वि.सं. १९९९ मुनि श्री वीरसागर जी से मुक्तागिरि सिद्धक्षेत्र पर सप्तम प्रतिमा के व्रत धारण किए।
प्रश्न ८६ -मुनिश्री शिवसागर जी की क्षुल्लक दीक्षा कब और कहाँ हुई?
उत्तर -वि.सं. २००० में सिद्धवरकूट सिद्धक्षेत्र पर क्षुल्लक दीक्षा आचार्य वीरसागर जी द्वारा हुई।
प्रश्न ८७ -क्षुल्लक श्री शिवसागर जी की मुनिदीक्षा कब और कहाँ हुई?
उत्तर -वि.सं. २००६ में नागौर (राज.) में आचार्यश्री वीरसागर जी के करकमलों द्वारा मुनिदीक्षा सम्पन्न हुई।
प्रश्न ८८ -आचार्यश्री वीरसागर जी महाराज तेरापंथी और बीसपंथी की क्या व्याख्या करते थे?
उत्तर -आचार्यश्री कहते थे कि हम मुनि तेरह प्रकार का चारित्र पालते हैं अत: (५ महाव्रत, ५ समिति, ३ गुप्ति) हम तेरहपंथी हैं और श्रावक (अष्टमूलगुण, ५ अणुव्रत, ३ गुणव्रत और ४ शिक्षाव्रत) इन बीसव्रतों को धारण करने से बीसपंथी हैं।
प्रश्न ८९ -आचार्यश्री वीरसागर जी महाराज का आखिरी चातुर्मास कहाँ हुआ?
उत्तर -जयपुर-खानियां (राज.) में हुआ।
प्रश्न ९० -आचार्यश्री वीरसागर जी की सल्लेखना कब हुई?
उत्तर -वि.सं. २०१४ (सन् १९५७ में) आश्विन कृष्णा अमावस्या को खानियां-जयपुर (राज.) में चतुर्विध संघ के सानिध्य में।
प्रश्न ९१ -आचार्यश्री शिवसागर जी के पट्टाचार्य कौन बने?
उत्तर -आचार्यश्री १०८ धर्मसागर जी महाराज।
प्रश्न ९२ -आचार्यश्री धर्मसागर जी का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर -राजस्थान के बूंदी जिला के गंभीरा ग्राम में जन्म हुआ।
प्रश्न ९३ -आपके माता-पिता का क्या नाम था?
उत्तर -पिता श्री वख्तावरमल जी एवं माता श्रीमती तुंभरावबाई थीं।
प्रश्न ९४ -आपके बचपन का क्या नाम था?
उत्तर -बचपन का नाम चिरंजीलाल था।
प्रश्न ९५ -क्या आपका विवाह हुआ था?
उत्तर -नहीं, आप बालब्रह्मचारी रहे।
प्रश्न ९६ -श्री चिरंजीलाल की दीक्षा कब और कहाँ हुई?
उत्तर -महाराष्ट्र प्रान्त के बालूज ग्राम में वि. सं. २००१ में।
प्रश्न ९७ -ब्र. श्री चिरंजीलाल जी ने किससे क्षुल्लिका दीक्षा प्राप्त की?
उत्तर -आचार्यकल्प श्री चन्द्रसागर जी महाराज से।
प्रश्न ९८ -आपका क्षुल्लक अवस्था का क्या नाम था?
उत्तर -क्षुल्लक श्री भद्रसागर जी महाराज।
प्रश्न ९९ -आपकी ऐलक दीक्षा कहाँ हुई?
उत्तर -फुलेरा पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के समय आपको ऐलक दीक्षा प्राप्त हुई।
प्रश्न १०० -आपके ऐलक दीक्षा गुरु का नाम बताओ?
उत्तर -आचार्यश्री वीरसागर जी महाराज।
प्रश्न १०१ -आपने जैनेश्वरी दिगम्बर मुनि दीक्षा कब प्राप्त की?
उत्तर -वि.सं. २००८ कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी को।
प्रश्न १०२ -आपके मुनिदीक्षा गुरु कौन रहे?
उत्तर -आचार्यश्री १०८ वीरसागर जी महाराज।
प्रश्न १०३ -मुनिश्री धर्मसागर जी को आचार्यपद कहाँ प्रदान किया गया?
उत्तर -वि.सं. २०२५ में श्री महावीर जी शांतिवीर नगर में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महामहोत्सव के पावन अवसर पर।
प्रश्न १०४ -आचार्यश्री धर्मसागर जी की समाधि कहाँ हुई?
उत्तर -सन् १९८७ में सीकर (राज.) में।
प्रश्न १०५ -आचार्यश्री धर्मसागर जी का आचार्यपट्ट किसको प्राप्त हुआ?
उत्तर -आचार्यश्री धर्मसागर जी की समाधि के बाद मुनि श्री अजितसागर जी महाराज को चतुर्विध संघ के सानिध्य में आचार्यपद प्रदान किया। ७ जून १९८७ को उदयपुर (राज.) में।
प्रश्न १०६ -आचार्य अजितसागर जी का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर -वि.सं. १९८२ में म.प्र. की भोपाल राजधानी के निकट आष्टा नामक कस्बे में आपका जन्म हुआ।
प्रश्न १०७ -आपके माता-पिता का क्या नाम था?
उत्तर -पद्मावती पुरवाल लाला श्री जबरचंद जी पिता श्री और श्रीमती रूपाबाई मातु:श्री के आप लाल थे।
प्रश्न १०८ -आपके गृहस्थावस्था का क्या नाम था?
उत्तर -श्री राजमल जी जैन।
प्रश्न १०९ -आपने गृहत्याग कब किया?
उत्तर -आपने १७ वर्ष की अल्पायु में आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज की सत्प्रेरणा से गृहत्याग किया और संघ में सम्मिलित हो गये।
प्रश्न ११० -आपने सप्तम प्रतिमा कब, कहाँ और किससे धारण की?
उत्तर -वि.सं. २००२ में झालरापाटन (राज.) में आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज से सप्तम प्रतिमा के व्रत स्वीकार किए।
प्रश्न १११ -गृहत्याग के बाद आपने विद्या अध्ययन किससे प्राप्त किया?
उत्तर -गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी से तत्त्वार्थराजवार्तिक, गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) पंचाध्यायी, पात्रकेशरी स्तोत्रादि अनेकों ग्र्ांथों का अध्ययन किया।
प्रश्न ११२ -ब्र. श्री राजमल जी ने मुनि दीक्षा कब और कहाँ धारण की?
उत्तर -वि.सं. २०१८ (सन् १९६१), कार्तिक शुक्ला चतुर्थी को सीकर (राज.) में आचार्यश्री शिवसागर जी महाराज से मुनिदीक्षा धारण की।
प्रश्न ११३ –ब्र. श्री राजमल जी को मुनिदीक्षा की सत्प्रेरणा किसने प्रदान की?
उत्तर -परमपूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी की पावन प्रेरणा मुनिदीक्षा में प्रबल निमित्त कारण बनी।
प्रश्न ११४ -ब्र. राजमल जी आगे जाकर किस नाम से प्रसिद्ध हुए?
उत्तर -चतुर्थ पट्टाचार्य आचार्यश्री १०८ अजितसागर जी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए।
प्रश्न ११५ -क्या पंचमकाल में आज भी भावलिंगी दिगम्बर मुनि होते हैं?
उत्तर -हाँ! पंचमकाल के अंतिम समय तक भावलिंगी दिगम्बर साधु होंगे, ऐसा जो नहीं मानता, वह अज्ञानी है। ऐसा कुंदकुंददेव ने मोक्षपाहुड़ में कहा है।
प्रश्न ११६ -क्या आज के मुनि तप करके इन्द्रादिक पद को प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर -हाँ! आज भी पंचमकाल में रत्नत्रय से शुद्ध मुनि आत्मा का ध्यान करके इन्द्रत्व और लौकांतिक देव के पद को प्राप्त कर लेते हैं और वहाँ से चयकर मनुष्य भव धारणकर दीक्षा लेकर तप द्वारा कर्मों को नाशकर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं, ऐसा आचार्य कुन्दकुन्ददेव ने मोक्षपाहुड़ में कहा है।
प्रश्न ११७ -मुनियों के कितने भेद होते हैं?
उत्तर -मुनियों के ५ भेद होते हैं। १. पुलाक २. वकुश ३. कुशील ४. निर्ग्रंथ ५. स्नातक।
प्रश्न ११८ -पुलाक मुनि किसे कहते हैं?
उत्तर -जो उत्तर गुणों से हीन तथा मूलगुणों में क्वचित् कदाचित दोष लगा लेते हैं, वे पुलाक मुनि कहलाते हैं।
प्रश्न ११९ -वकुश मुनि का क्या लक्षण है?
उत्तर -जो मूलगुणों को तो पूर्णतया पालते हैं किन्तु शरीर के संस्कार ऋद्धि, सुख, यश और विभूति के इच्छुक होते हैं, वे वकुश मुनि कहलाते हैं।
प्रश्न १२० -कुशील साधु किसे कहते हैं?
उत्तर -कुशील मुनियों के दो भेद हैं-प्रतिसेवना कुशील व कषाय कुशील। जो परिग्रह की भावना से सहित हैं, मूल और उत्तर गुणों में परिपूर्ण हैं किन्तु कभी-कभी उत्तर गुणों की विराधना करने वाले हैं, वे प्रतिसेवना कुशील कहलाते हैं और ग्रीष्मकाल में जो जंघा-प्रक्षालन आदि का सेवन करते हैं तथा संज्वलनमात्र कषाय के वशीभूत हैं, वे कषाय कुशील कहलाते हैं।
प्रश्न १२१ -निर्ग्रंथ साधु किसे कहते हैं?
उत्तर -जल में खींची हुई रेखा के समान जिनके कर्मों का उदय अनभिव्यक्त है और जिनके अंतर्मुहूर्त में ही केवलज्ञान होने वाला है, वे निर्ग्रंथ संत होते हैं, ये बारहवें गुणस्थानवर्ती ही होते हैं।
प्रश्न १२२ -स्नातक साधु किसे कहते हैं?
उत्तर -तेरहवें गुणस्थानवर्ती केवली भगवान को स्नातक कहते हैं।
प्रश्न १२३ -आचार्य अजितसागर जी के बाद आचार्यपद किसको प्राप्त हुआ?
उत्तर -आचार्यश्री श्रेयांससागर जी को आचार्यपद पर चतुर्विध संघ ने प्रतिष्ठित किया।
प्रश्न १२४ -चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज के आचार्य- पट्ट परम्परा के आचार्यों के नाम बताओ?
उत्तर -१. आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज २. आचार्यश्री शिवसागर जी महाराज ३. आचार्यश्री धर्मसागर जी महाराज ४. आचार्यश्री अजितसागर जी महाराज ५. आचार्य श्री श्रेयांससागर जी महाराज ६. आचार्य श्री अभिनंदनसागर जी महाराज।
प्रश्न १२५ -वर्तमान में आचार्य शांतिसागर जी के पट्ट पर कौन से आचार्यश्री प्रतिष्ठित हैं?
उत्तर -परमपूज्य आचार्य १०८ श्री अभिनंदनसागर जी महाराज इस पट्ट पर आसीन होकर धर्मप्रभावना कर रहे हैं।
नोट -यहाँ विशेष ज्ञातव्य है कि चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज की परम्परा में चतुर्थ पट्टाचार्य श्री अजितसागर जी महाराज की समाधि के पश्चात् पंचम पट्टाचार्य के पद पर आचार्यश्री श्रेयांससागर महाराज एवं आचार्य श्री वर्धमानसागर महाराज अभिषिक्त हुए हैं। अत: सन् १९९० से इस परम्परा के दो आचार्य बन गये हैं। उन दोनों की परम्पराएं चल रही हैं। उनमें से प्रथम पंचम पट्टाचार्य श्री श्रेयांससागर महाराज की समाधि के बाद षष्ठम् पट्टाचार्य के रूप में आचार्यश्री अभिनंदनसागर महाराज चतुर्विध संघ का नेतृत्व कर रहे हैं।
प्रश्न १२६ -वर्तमान में आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज से संबंधित क्या मनाया जा रहा है?
उत्तर -आचार्यश्री वीरसागर वर्ष।
प्रश्न १२७ -यह वर्ष कब से प्रारंभ हुआ है?
उत्तर -आसोज शु. पूर्णिमा, ११ अक्टूबर २०११ से।
प्रश्न १२८ -कब तक यह वर्ष मनाया जायेगा?
उत्तर -आश्विन शुक्ला पूर्णिमा, २९ अक्टूबर २०१२ तक।
प्रश्न १२९ -इस वर्ष को मनाने की प्रेरणा किनने प्रदान की?
उत्तर -पूज्य आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज की प्रमुख शिष्या गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने।
प्रश्न १३० -इस वर्ष को मनाने का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर -जन-जन को आचार्यश्री के स्वर्णिम व्यक्तित्व से परिचित कराना ही इस वर्ष का प्रमुख उद्देश्य है।
प्रश्न १३१ -हम श्रावकों को इसके अन्तर्गत क्या करना है?
उत्तर -अपने-अपने गाँव-नगर में आचार्यश्री के जीवन से संबंधित संगोष्ठी, प्रश्नमंच, भाषण प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता आदि का आयोजन तथा वीरसागर विधान, पूजन, चालीसा, भजन, आरती आदि करके अपनी गुरुभक्ति का परिचय प्रदान करना है।